मुसलमान समान नागरिक संहिता के खिलाफ क्यों हैं? indianstoryno1

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बीजेपी गवर्नमेंट जबी पावर में आई थी तब उन्होंने तीन मेन मगर कंट्रोवर्शियल इश्यूज उठाए थे और यह दावा किया था कि वो इन्हें हर हाल में पूरा करेंगे पहला इशू था एब्रे ऑफ आर्टिकल 370 दूसरा था राम मंदिर इशू और फाइनली थर्ड यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट यूसीसी लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि मानो फाइनली ये गवर्नमेंट अपने आखिरी वाद यूसीसी को काफी सीरियसली ले रही है क्योंकि अभी रिसेंटली खबर आई है कि उन्होंने स्पेशली यूसीसी के लिए एक लॉ कमीशन एस्टेब्लिश की है जो अगले 30 दिनों के अंदर-अंदर आम जनता से इस पर राय मांगने वाले हैं बट यहीं पर आता है असली प्रॉब्लम लोग क्या राय देंगे क्योंकि आज देखो इस पूरे टॉपिक को ना एक रिलीजियस एंगल देकर कई कम्युनिटीज का अलग-अलग ओपिनियन ओपिनियन फॉर्म हो चुका है एक तरफ वो लोग हैं जो इसे खुलकर सपोर्ट कर रहे हैं लेकिन मीडिया हमें ये बताती है कि ये मोस्टली हिंदूजा रहा है कि मोस्टली माइनॉरिटी ग्रुप्श हैं जिनका ये मानना है कि इससे इंडिया की यूनिटी इन डाइवर्सिटी का मेन एसेंस ही खत्म हो जाएगा और फाइनली आते हैं तीसरे कैटेगरी के लोग जो माइनॉरिटी में होने के बावजूद भी इसे सपोर्ट कर रहे हैं खैर जब भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन बीएमएमए ने करीब 10 राज्यों में मुस्लिम औरतों का सर्वे किया तो यह पता चला कि उनमें से 90% पर औरतें सी यूसीसी को पूरा सपोर्ट कर रही हैं महिलाओं ने यूसीसी के सपोर्ट में क्लीयरली यह कहा कि वो ओरल एंड यूनिलैटरल तलाक और पॉलिगर सरकार द्वारा कंप्लीट बैन चाहते हैं सो यहां पर वापस से आ जाता है वही सवाल कि असली सच्चाई क्या है क्या यूसीसी वाकई में इंडिया के बाकी माइनॉरिटी पर हिंदू लॉज इंपोज करेगा और क्या वाकई में हमारे माइनॉरिटी इससे खुश नहीं है एंड फाइनली क्या ऐसे में गिवन दैट इंडिया में करीब 75% पर आबादी हिंदुओं की है क्या बीजेपी उनकी मदद से यूसीसी को बहुत ही जल्दी लागू कर देगी सो देखो इससे जुड़ी रिसेंटली एक खबर आई है कि उत्तराखंड गवर्नमेंट ने यूसीसी लागू करने की तैयारी कर ली है और जैसे कि आप


यहां पर देख सकते हो उनके सीएम पुष्कर सिंह धामी ने उसका ब्लूप्रिंट भी रेडी कर दिया है अब माइंड यू ये सिर्फ उत्तराखंड का प्रपोज्ड यूसीसी ड्राफ्ट है पूरे नेशन का नहीं बट इससे एक फेयर आईडिया आप लगा सकते हो कि इसमें होने क्या वाला इस ड्राफ्ट के अनुसार अब तक  डिफरेंट रिलीजिय सकम्युनिटीज के लिए चार अलग-अलग पर्सनल लॉस हिंदू बुद्धिस्ट जैन और सिख्स के लिए द हिंदू मैरिज एक्ट 1955 मुस्लिम्स के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉज 1937 क्रिश्चियंस के लिए द इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट 18720 मैरिज एंड डाइवोर्स एक्ट 1936 बट अब अगर यूसीसी लागू होता है तो मैरिज डाइवोर्स प्रॉपर्टी में हक जैसे पर्सनल डिस्प्यूट्स को रिजॉल्व करने के लिए सभी धर्मों के लोगों को एक सिंगल लॉ ही फॉलो करना पड़ेगा सो इससे काइंड ऑफ यूसीसी का एक बेसिक क्लॉस क्या है उसका आईडिया आपको आ गया होगा अब बात करते हैं जो यूसीसी के अगेंस्ट में है वो इसके विरोध में क्या आर्गुमेंट उठा रहे हैं सो उनके चार मेजर आर्गुमेंट हैं सबसे पहले उनका ये कहना है कि गवर्नमेंट यूसीसी को लेकर बाकी सभी धर्मों पर हिंदू कोड या सिंपली अपने हिंदूत्व आइडियो को इंपोज करना चाह रहे हैं और इसीलिए कोर्ट्स को इसमें स्ट्रांग इंटरवेनर चाहिए बेसिकली उन्हें यह डर है कि यूसीसी लागू होने से बाकी सभी धर्मों को हिंदू कस्टम्स को फॉलो करना पड़ेगा और देखा जाए तो गलती भी नहीं है क्योंकि मीडिया और दूसरे जो पॉलिटिकल पार्टीज हैं वो यही नैरेटिव को बहुत ज्यादा प्रोपागेट कर रहे हैं और यहां पर मैं सिर्फ क्रिश्चियंस और मुस्लिम्स की बात नहीं कर रहा हूं इसमें इंडिया के भी कई ट्राइबल कम्युनिटीज भी आ जाते हैं लाइक फॉर एग्जांपल 2016 में ही राष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद ने यूसीसी के अगेंस्ट सुप्रीम कोर्ट को अप्रोच किया था क्लेम दैट पॉलिगेमस प्रैक्टिस है जो नागा गोंस बलगा लुशाई और ऐसे कई आदिवासी समुदायों में भी कब से होती आ रही है और इसके अलावा एक महिला का मल्टीपल पुरुषों के साथ शादी करना या सिंपली पॉलि एंड्री य तियानो रोटा खासा लद्दाखी बोटा ऐसे कई हिमालयन ट्राइब्स में भी चलते आ रहे हैं राइट फ्रॉम कश्मीर टू आसाम सो क्या ये सभी ट्राइब्स यूसीसी को ओपनली एक्सेप्ट करेंगे जमात उलमा हिंद के चीफ अरशद मदानी का तो यह कहना है कि वो अपने पर्सनल लॉज पिछले 1300 सालों से फॉलो करते आ रहे हैं सो यूसीसी के इप टेशन से देश के मुसलमानों को ठेस पहुंच सकती है अब ओबवियसली इन्हीं सारे आर्गुमेंट के चलते कई पॉलिटिकल पार्टीज जैसे द समाजवादी पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया सीपीआई नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी और इंडियन नेशनल कांग्रेस और भी पार्टीज का यह मानना है कि यह बिल अगर पास हुआ तो यह हमारे देश के सोशल फैब्रिक को डिस्ट्रॉय करके सीधा यूनिटी इन डाइवर्सिटी वाले हमारे प्रिंसिपल को ही चोट पहुंचा देगा और इसीलिए कोर्ट्स को इन वैल्यूज को प्रिजर्व करने के लिए इंटरवू है खैर यूसीसी के अगेंस्ट दूसरा आर्गुमेंट है कि यूसीसी य के आने से लोगों का फंडामेंटल राइट फ्रीडम टू प्रैक्टिस एनी रिलीजन वायलेट हो जाएगा क्योंकि यूसीसी सभी रिलीजियस पर्सनल लॉ को अबॉलिश करके इंडिया वाइड सभी लोगों पर इरेस्पेक्टिव ऑफ रिलीजन बस एक ही सिंगल लॉ लागू करेगा देन आता है तीसरा आर्गुमेंट जिसमें अपोजिशन का यह कहना है कि जब सीआरपीसी और आईपीसी जैसे क्रिमिनल लॉज इंडिया वाइड यूनिफॉर्म इंप्लीमेंट नहीं हुए हैं यानी कि जैसे महाराष्ट्र कर्नाटका दिल्ली में अल्कोहल कंसंट एज अलग-अलग है या यूपी में बेल ग्रांट करने वाला सीआरपी स सेक्शन 438 स्टेट के हिसाब से पर्सनलाइज्ड है तो यह सब जब अलग-अलग है और इंडिया फिर भी एफिशिएंटली वर्क कर ही रहा है तो इंडिया को यूनिफॉर्म पर्सनल या सिविल लॉज की क्या जरूरत है एंड इन सभी आर्गुमेंट के अलावा चौथा मेजर आर्गुमेंट है कि क्या कॉन्स्टिट्यूशन फादर यानी डॉ बी आर अंबेडकर जी भी टोटल यूनिफॉर्म चाहते थे क्योंकि अगर वो ऐसा चाहते तो वो यूसीसी को करंट लिस्ट में नहीं रखते अब अगर आपको कॉन्करेंट लिस्ट क्या है ये नहीं पता तो बेसिकली इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन के  स्केड्यूल सेवन में हर सब्जेक्ट को बेसिकली यूनियन लिस्ट स्टेट लिस्ट और कॉन्करेंट लिस्ट में बाइफ केट किया गया है ये बेसिकली बस इतना बताते हैं कि किस सब्जेक्ट पर कानून कौन बनाएगा सेंट्रल स्ल यूनियन गवर्नमेंट या स्टेट गवर्नमेंट या फिर दोनों गवर्नमेंट्स मिलकर खैर ये मुद्दा उठाकर सिंपली ये कहने की कोशिश की जा रही है कि कॉन्स्टिट्यूशन फादर कभी भी सारे पर्सनल लॉस को यूनिफाई करना ही नहीं चाहते थे वो चाहते थे कि यह सिर्फ तभी हो जब सेंटर स्टेट्स और सभी लोग साथ में ऐसा करना चाहते हो यानी कि सभी के कंसेंसस से सो जब हमारे फाउंडिंग फादर यह नहीं चाहते थे तो अभी हमें इसके साथ छेड़छाड़ करने की क्या जरूरत है सो फ्रेंड्स यानी कि मामला सिंपल है इन शॉर्ट यूसीसी के जो लोग अगेंस्ट है वो सीधा कांस्टिट्यूशन के शुरुआती ड्राफ्टिंग पर ही सवाल उठा रहे हैं दरअसल देश के शुरूआती दिनों में हमारे कॉन्स्टिट्यूशन को ड्राफ्ट या रिवाइज करने वाली कॉन्स्टिट्यूशन असेंबली यूसीसी को लेकर काफी कंफ्यूज थी यू नो कि उसे पार्ट थ्री फंडामेंटल राइट्स में डाले या फिर उसे सजेशंस के तौर पर पार्ट फोर डायरेक्टिव प्रिंसिपल ऑफ स्टे पॉलिसीज में डाले अब यहां पर खेल देखो अगर यूसीसी को शुरुआत से ही फंडामेंटल राइट्स के साथ रखा गया होता तो उस पर कानून बनाना पड़ता और उससे पॉसिबिलिटी थी कि लोग भावनाओं में बहकर अभी की तरह ही इस पर जमकर विरोध करते सो इसे काफी स्मार्टली डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स की लिस्ट में डालकर एक सजेशन के तौर पर फ्यूचर गवर्नमेंट्स पर सब कुछ छोड़ दिया गया अब इस पर कईयों का यह कहना है कि मे बी ऐसा इसीलिए किया गया क्योंकि उस वक्त इंडिया जो रिलीजन के बेसिस पर ही सेपरेट हुआ था उसमें यूसीसी इजली प्रोटेस्ट ट्रिगर कर सकता था जो तब का न्यूली इंडिपेंडेंट भारत बिल्कुल भी अफोर्ड नहीं कर सकता था क्योंकि हम वैसे ही हजारों प्रॉब्लम से जूझ रहे थे तो कुछ का ये कहना है कि तब की गवर्नमेंट ने ये मुद्दे से उनके अगेंस्ट बैकल श ना आए करके इसे आगे ढकेल दिया अब क्योंकि डीएसपीएस सिर्फ सजेशंस होते हैं और कानून नहीं इसीलिए यूसीसी को इंप्लीमेंट करने से पहले उसका ऑप्शनल सजेशंस से एक इंप्लीमेंटेबल लॉ में कन्वर्ट होना बहुत जरूरी है और ये तो भाई एक अलग ही गैंबल है दरअसल अगर बीजेपी सरकार यूसीसी को लॉ में कन्वर्ट करना चाहे तो एज वी ऑल नो इंडियन पार्लियामेंट में दो हाउसेस होते हैं लोकसभा और राज्यसभा सो गवर्नमेंट को  यूसीसी का बिल इन दोनों हाउसेस में से किसी एक हाउस में इंट्रोड्यूस करना पड़ेगा इसके बाद उस पटिकुलर हाउस के मेंबर्स उस बिल पर डिस्कशन करेंगे और अगर मेजॉरिटी वोट मिला तो ही वह बिल दूसरे हाउस में भेजा जाएगा जहां अगेन सिमिलर डिस्कशन और वोटिंग से उसे पास या फिर फेल कर दिया जाएगा यानी सिंपली पुट बीजेपी को दोनों हाउस इसमें मेजॉरिटी की जरूरत होगी और यही होगा यूसीसी का सबसे पहला ऑब्स्ट कल अब लेट्स से बीजेपी सम हाउ कुछ छोटी-मोटी पार्टीज का साथ लेकर इन दोनों भी हाउसेस में यूसीसी को पास करवा लेती है तब भी आगे का गेम इज नॉट गोइंग टू बी इजी दोनों हाउसेस में पास होने के बाद बिल यूजुअली फाइनल साइन स्ल अप्रूवल के लिए प्रेसिडेंट के पास भेजा जाता है अब यहां पर प्रेसिडेंट के पास बिल को लेकर तीन ऑप्शंस होते हैं फर्स्ट एब्सलूट वीटो मतलब सीधे बिल को रिजेक्ट कर देना सेकंड सस्पेंसिव वीटो यानी कि बिल में चेंजेज बताकर वापस से पार्लियामेंट में भेज देना और थर्ड पॉकेट वीटो ये प्रेसिडेंट का सबसे पावरफुल वीटो होता है जिसमें एज द वर्ड सेज बिल को रिजेक्ट या वापस दिए बिना इनफिट टाइम के लिए उसे लटका दिया जाएगा यानी कि ना ही अप्रूव और ना ही रिजेक्ट जो है यूसीसी का सेकंड मेजर ऑब्स्ट कल अब लेट्स से हाइपोथेटिकली ये वाला राउंड भी बीजेपी सम हाउ क्लियर कर लेती है तब फिर आता है तीसरा और सबसे कुशल ऑब्स्ट कल यानी जुडिशरी अब जुडिशरी के बारे में आप आप ऑलरेडी जानते हो कि व्हाट एवर बी द केस हमारे देश के कोर्ट्स में लोगों के फंडामेंटल राइट्स किसी भी पर्सनल लॉ से हमेशा ऊपर माने जाते हैं सो यूसीसी बीइंग अ पर्सनल लॉ अगर लेट्स से किसी के राइट्स टू प्रैक्टिस टू रिलीजन के बीच आता है तो चांसेस है कि हमारे कोर्ट्स उसके अगेंस्ट में फैसला सुनाएंगे बट एक सेकंड एक क्वेश्चन यहां पे आता है व्हाट इफ एक फंडामेंटल राइट दूसरे फंडामेंटल राइट के आड़े आ रहा हो तब फिर कोर्ट्स क्या फैसला सुनाएंगे वेल बस इसी चीज को टेस्ट करने के लिए यूसीसी के सपोर्टर्स अपनी तरफ से दिल्ली हाई कोर्ट में रिसेंटली पीआईएस फाइल कर रहे थे दरअसल दिल्ली हाई कोर्ट में यूसीसी के फेवर में बीजेपी द्वारा दो पीआईएस फाइल होने के बाद तीसरी और चौथी पीआईएल खुद इंडिपेंडेंटली दो मुस्लिम्स ने फाइल की थी एक खुद इंडिया के पहले एजुकेशन मिनिस्टर मौलाना आजाद के ग्रैंड नेफ्यू और मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के चांसलर फिरोज बक्त अहमद जी ने और दूसरी एक इंडिपेंडेंट फीमेल सोशल एक्टिविस्ट एंबर जयदी ने इन यूसीसी सपोर्टर्स का कहना है कि भले ही आजादी के बाद 1956 में हिंदू पर्सनल लॉज मॉडर्नाइज कर दिया गया लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉज के डिफेक्ट्स को रिमूव करने की कोशिश नहीं की गई यानी कि उसमें मॉडर्नाइजेशन या रेफर मैं नहीं लाया गया और इसीलिए मुस्लिम पर्सनल लॉज के अंडर पॉलीगेनिक हलाला और चाइल्ड मैरिजस जैसी एंटी वमन प्रैक्टिसेस आज भी वैलिड है अब चाइल्ड मैरिज के बारे में तो आप ऑलरेडी जानते हो जिन्हें पॉलिगर निकाह हलाला के बारे में नहीं पता उन्हें मैं बता दूं पॉलिगामी में बेसिकली एक मुस्लिम मर्द मल्टीपल औरतों से शादी कर सकता है और निकाह लाला के अनुसार अगर उसने अपनी किसी बीवी को तलाक देकर वापस से अपनाना चाहा तो उसकी उस एक्स वाइफ को किसी दूसरे पराए मर्द से शादी करनी पड़ेगी और फिर उससे तलाक लेकर अपने पुराने स्लश ओरिजिनल पति से शादी करनी पड़ी और यही वजह है कि एक बड़ी जर्नलिस्ट अमाना बेगम अंसारी ने मुस्लिम पर्सनल लॉज को स्पेसिफिकली एक पेट्रिया शल सेटअप कहा था उनका मानना यह है कि यूसीसी मुस्लिम महिलाओं के लिए उनकी राइट टू जेंडर इक्वलिटी को इंश्योर करेगा जो बेसिकली काउंटर करता है यूसीसी के अगेंस्ट वाले लोगों का सेकंड आर्गुमेंट रिगाडिंग फंडामेंटल राइट्स इसके अलावा इन सपोर्टर्स का एक और एक आर्गुमेंट ये भी है कि जिस सिंगल पर्सनल लॉ को लागू करने की बात हो रही है वो हिंदुत्व से जुड़ी हुई है ये आखिर किस बेसिस पर बोला जा रहा है क्योंकि जरा यूएस और यूके जैसे सेकुलर देशों में मैरिज वगैरह को लेकर क्या लॉज है अगर हम वो देखें और उन्हें हिंदू मैरिज एक्ट 1955 से कंपेयर करें तो यूएस में भी मेजर्ली पॉलीगोनी एंड्री यानी कि मल्टीपल पार्टनर्स के साथ मैरिजस प्रोहिबिटेड है अंडर एज मैरिजस प्रोहिबिटेड है और डा के लिए भी प्रॉपर कंपनसेटरी प्रोविजंस है सेम एज इन द केस ऑफ यूके यहां भी मैरिज की पूरी कंट्री में एक सिंगल एज दैट इज 18 इयर्स है और पॉलिगामी पॉली एंड्री बैंड है अब यही एगजैक्टली हिंदू मैरिज एक्ट 1955 में भी है सो सपोर्टर्स का क्वेश्चन यहां पर ये है कि फिर क्या यूएस और यूके के मैरिज एक्ट्स भी हिंदुत्व ड्रिवन है बेसाइड्स गोवा में तो यूसीसी 1961 से ही लागू है और वहां तो कोई हिंदू मुस्लिम या हिंदू क्रिश्चियन नहीं हो रहा है सो क्या सोशल फैब्रिक खराब होगा ये आर्गुमेंट भी पूरी तरीके से वैलिड है ऑन द फर्स्ट प्लेस क्योंकि सपोर्टर्स के हिसाब से यह अगेंस्ट नैरेटिव के सबसे मेन पॉइंट हिंदुत्व के पॉइंट को काउंटर करता है एंड रही बात कि हमारे फाउंडिंग फादर्स ऐसा चाहते थे या फिर इससे प्रोटेस्ट होंगे इसीलिए नहीं छेड़ना चाहिए या इवन सीआरपीसी वाला पॉइंट कि क्रिमिनल लॉस तो नेशन वाइड एकदम यूनिफॉर्म नहीं होते सो पर्सनल लॉस को  क्यों करना है इन सब आर्गुमेंट के अगेंस्ट सपोर्टर्स का यही कहना है कि अगर ऑलरेडी सिस्टम्स में कुछ इरेगुलेरिटीज हो तो क्या हमें उसे वैसे ही छोड़ देना चाहिए क्या लॉस को अपडेट नहीं करना चाहिए 

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