नमस्कार
209 फरवरी 1900 तैतालीस
जर्मनी के शहर की से एक
जर्मन सबमरीन रवाना होती
है
वैसे तो इसमें सभी नाबजी
जर्मनी के सोल्जर्स बैठे
हैं, लेकिन इन सबके बीच
मौजूद है एक इंडियन भी
एक इंडियन जिनका नाम है
इस सबमरीन को मिशन दिया
गया है
साउथ की तरफ ट्रैवेल करना
है
अफ्रीका के बगल से होते
हुए जाना
और मिस्टर मतसुधा को
ट्रांसफर करना एक
जापानीज़ सबमरीन ये काम
सुनने में आसान लगता है
लेकिन खतरों से बिल्कुल
भी खाली नहीं है
क्योंकि समुद्र भरा हुआ
है ब्रिटिश जहाजों से और
ये समय है वर्ल्ड वॉर टू
का
जब जर्मनी और जापान दोनों
डॉनन लड़ रहे है ब्रिटिश के
खिलाफ़ 26 अप्रैल 1900
तैतालीस करीब ढ़ाई महीने
के सफर के बाद जब ये
जर्मन सबमरीन की कॉस्ट के
पास पहुंचती है तो सामने
बड़ी नज़र आती है
लेकिन समुद्र इतना तूफानी
था की इन दोनों सब मरीन्स
का एक दूसरे के आस पास
आना बहुत खतरनाक हो सकता
था, तो अगले दो नों सब
मरीन्स पैरेलल चलती रहती
है
आगे फाइनली जाकर जब मौसम
साफ होता है तो मिश्र मत
सुदा सब मरीन से बाहर
निकलते है
एक छोटी सी राफ पदलिंग
करते हुए भीगते हुए वो
जापानी सबमरीन के पास
पहुंचते है
जहाँ पर कैप्टन मासाओ
तेरा ओका उनका स्वागत
करते है
एक सवाल आपके मन में
उठेगा की जर्मन और
जापानीज़ सुमरीन वर्ल्ड
वॉर टू के समय पर एक
इंडियन की क्यों मदद कर
रही है?
ऐसा इसलिए दोस्तों
क्योंकि मिस्टर मधसूदा और
कोई नहीं बल्कि हमारे
नेताजी सुभाष चंद्र बोस
है?
जाने अनजाने में इस
ऐतिहासिक जर्नी के दौरान
यह इतिहास के पहले इंडियन
भी बन जाते हैं
एक सबमरीन में सफर करने
वाला सुभाष चंद्र बोस
दोस्तों इंडिया के सबसे
महान फ्रीडम फाइटर्स में
से एक है और इनकी पूरी
कहानी ऐसे ही कमाल के
किस्सों से भरी हुई
कैसे ये ब्रिटिश हुकूमत
को चखमा देकर इंडिया
छोड़कर भागे?
जर्मनी गए, हिटलर से मिले,
रशिया गए
जापान गए जापानीज़ प्राइम
मिनिस्टर से मिले
सिंगापुर गए अपनी एक
आर्मी बनाई और इंडिया के
बाहर रह कर ब्रिटिश
हुकूमत के खिलाफ़ सबसे
बड़ी जंग छेड़ी
वी वांट टु इंडिया वी हॅव
टु फाइट दी एन एमी विथ
हिज़ ओन वेपन्स
आइये समझते है इनकी पूरी
दास्तां आज के इस वीडियो
में
अपनी कहानी की शुरुआत
करते हैं
साल 1939 से वो साल जब
वर्ल्ड वॉर टू की शुरुआत
हुई, इंडिया के बीहाफ पे
भी वॉर डिक्लेर कर दी
बिना किसी इंडियन से
कंसल्ट की है
कांग्रेस के लिए ये बड़ी
एम्ब्रिस्मेन्ट वाली बात
थी और गवर्नमेंट ऑफ़
इंडिया अक्ट के तहत
कांग्रेस के पास कुछ
मिनिस्ट्रीज का कंट्रोल
था तो कांग्रेस ने उन सभी
पोज़ीशन से रिसाइन कर दी
इस समय के बीच सुभाष
चंद्र बोस अपनी खुद की
पार्टी ऑर्गनाइज़ कर रहे
थे
दी फॉर्वर्ड ब्लॉक
हालांकि ये पार्टी
कांग्रेस के बीच से ही
निकली थी लेकिन साल 1940
तक आते आते इसको कांग्रेस
के मुख्य संगठन से अलग कर
दिया गया था
इसके पीछे दो कारण थे
पहला ये की सुभाष चंद्र
बोस
कुछ ज्यादा ही लेफ्टिस्ट
विचारधारा के बन रहे थे
जो कांग्रेस के बाकी
लीडर्स को पसंद नहीं आ
रहा था
इस चीज़ की बात मैंने
डीटेल में गाँधी वर्सस
वाले वीडियो में करी है
लिंक डिस्क्रिप्षन में
अगर आपने नहीं देखा है और
दूसरा कारण था की बोस्ट
चाहते थे सेकंड वर्ल्ड
वॉर का इस्तेमाल किया जाए
इंडिया के बेनिफिट के लिए
जल्दी से अक्शॅन लेना
चाहते थे और कांग्रेस से
अलग होना उनके लिए एक
नेसेसिटी बन गई थी
जुलाई 1940 कलकत्ता में
बोस 1 मार्च लीड कर रहे
थे, जिसके चलते उन्हें
ब्रिटिश हुकूमत के द्वारा
अरेस्ट कर लिया जाता है
जेल में रहकर वो सरकार की
ताकत को चैलेंज करते हैं
एक हंगर स्ट्राइक लॉन्च
करके रिलीज़ मी और आई शॉल
रेफुस टु लाइव उनकी तरफ
से सीधी अनाउंसमेंट करी
जाती है
1940 ही वास् लैंगुएजिंग
इन प्रेसेंट सो ही गिवेन
अल्टीमेटम टु दी ब्रिटिश
गवर्नमेंट एंड अंडर टूक ए
फास्ट अनुकिटेड देखते
देखते उनकी तबियत खराब
होने लगती है और एक ही
हफ्ते में सरकार डिसैड
करती है की उन्हें जेल से
निकाल कर हॉउस अरेस्ट पर
रख दिया जाए
सरकार नहीं चाहती थी की
उन पर ब्लामे आए
अगर सुभाष चंद्र बोस जेल
में मारे गए तो?
इसलिए उन्होंने सोचा कि
जब तक हेल्त खराब है तब
तक हॉउस अरेस्ट पर रखते
हैं
जैसे ही हेल्त ठीक होगी
वापस जेल में डाल देंगे
लेकिन नेताजी अपने अलग ही
प्लेन्स रच रहे थे
इनका प्लान था जर्मनी
जाना और जर्मन से मदद
मांगना ब्रिटिश के खिलाफ़
लड़ाई करने के लिए
लेकिन जर्मनी तक जाया
कैसे जाए?
वो पंजाब में मौजूद एक
कम्युनिस्ट ऑर्गेनाइजेशन
को कॅाटाक्ट करते हैं ये
जानने के लिए कि क्या कोई
तरीका है बॉर्डर पार करके
जर्मनी तक चुपके से जाने
का
उन्हें बताया जाता है कि
एक तरीका जरूर है
अफगानिस्तान के थ्रू अगर
एंटर किया जाए
वहाँ से सोविएट यूनियन
जाए जाए तो वहाँ से
जर्मनी जाए जा सकता है
16 जनवरी 1941 थे
करीब डेढ़ बजे जब पूरा
शहर सो रहा था तो नेताजी
चुपके से अपने घर से बाहर
निकलते हैं
अपने भतीजे शिशिर कुमार
बोस के साथ
उन्होंने एक डिस्ग्यूज़
पहनी हुई थी
वो प्रिटेंड कर रहे थे की
वो एक इन्षुरेन्स एजेंट
है जिनका नाम है मोहम्मद
ज़ियाउद्दीन
सिसिर के साथ अंधेरे में
ये रात भर ड्राइव करते
रहते हैं
करते रहते हैं और सुबह के
करीब साढ़े 8:00 बजे
धनबाद पहुंचते हैं
यहाँ ये एक रात से सिर के
भाई अशोक के घर में
बिताते हैं और अगले दिन
नजदीक के गोमो स्टेशन से
बोस काल का मेल की ट्रैन
पकड़ लेते हैं
ये रेल गाडी पहले दिल्ली
पहुंचती है और वहाँ से ये
गाड़ी बदलते हैं
पेशावर की ओर अगली ट्रैन
पकड़ते हैं
दी फ्रंटियर मेल नाम
पेशावर पहुँच कर इन्हें
रिसीव किया जाता है
फॉर्वर्ड ब्लॉक के
प्रिवेंशन लीडर मियान
अकबर शाह के द्वारा अगला
पड़ाव था ब्रिटिश राज़ के
इलाकों से पूरी तरीके से
बाहर निकलना
ऐसा करने के लिए ये अपना
रूप फिर से बदल लेते हैं
मोहम्मद जियाउद्दीन से ये
गूंगे और बहरे पठान बन
जाते हैं
यहाँ गूंगा और बहरा होना
इसलिए जरूरी था क्योंकि
बोस को पश्तो भाषा बोलनी
नहीं आती थी
प्राइमसी पखेर अगले पखेरस
से दे पखेर वो उसे जोड़
वो से खैर देना, न न मुँह
खुलते
राज़ भी खुल जाएगा तो
बॉर्डर पर कोई भी चेक
करने आए तो उनके साथ चलने
वाला पक्ष तो बता दे कि
ये बगल वाला पठान तो
गूंगा और बहरा है
ये एक और फॉर्वर्ड ब्लॉक
के लीडर भगत राम तलवार के
साथ ट्रैवेल करते हैं और
दोनों प्रिटेंड करते हैं
की अफगानिस्तान में अदद
शरीफ की श्राइन पर जा रहे
हैं
प्रार्थना करने की
इन्हें बोलना और सुनना आ
जाए
26 जनवरी साल 1941 गाड़ी
के जरिए पेशावर से निकलते
हैं ये और शाम तक
ब्रिटिश एम्पायर का
बॉर्डर क्रॉस हो चुका था
29 जनवरी की सुबह तक वो
अड्डा शरीफ पहुँच जाते
हैं और ट्रक्स और ट्रकों
की मदद से काबुल तक का
सफर पूरा करते हैं
क्नॉइस
कलकत्ता से काबुल जाने
में नेताजी को 15 दिन का
समय लगा
लेकिन ब्रिटिश सरकार को
इनके एस्केप के बारे में
इनके भाग निकलने के सिर्फ
12 दिन बाद ही पता चला
ऐसा इसलिए क्योंकि घर पर
मौजूद जो लोग थे वो
कॉन्स्टेंटली इनके कमरे
में खाना डेलिवर करने आते
थे
और इनके बाकी भतीजे इनका
खाना खा जाते थे
लोगों को लगता की सुभाष
जी अभी भी कमरे में ही है
खाना तो खाया जा रहा है
उनके लिए खाना डेलिवर
करवाया जा रहा है और ये
बात को इतना सीक्रेट रखा
गया की सुभाष जी की मम्मी
तक को नहीं पता था की वो
भाग निकले
घर से
ये सिर्फ 27 जनवरी को था
जब सुभाष चंद्र बोस के
खिलाफ़ एक केस सुना जाना
था कोर्ट में और जब वो
कोर्ट में पेश नहीं हुए
तो उनके दो भतीजों ने
पुलिस को इन्फॉर्म किया
की वो तो घर में है ही
नहीं
27 जनवरी को इनकी गायब
होने की खबर पहली बार
अखबार में पब्लिश होती है
आनंद बाजार पत्रिका और
हिंदुस्तान जिसके बाद
रॉयटर्स भी इसे उठा लेता
है और दुनिया भर में एक
खबर फैल जाती है
ब्रिटिश इन्टेलिजेन्स के
पास कई रिपोर्ट्स आती है
एक रिपोर्ट बताती है कि
वो किसी जापान जाने वाले
जहाज में है
दूसरी कुछ और बताती है
लेकिन कोई रिपोर्ट सच
नहीं थी
कलकत्ता से जापान जाने
वाले एक जहाज की तलाशी भी
ली जाती है
ब्रिटिश के द्वारा
लेकिन वो उसका कोई
नामोनिशान नहीं था
सुभाष ने अपने भतीजे से
सिर को बताया था की 4-5
दिन तक अगर ये खबर दबी
रहती है की वो भाग निकले
उसके बाद तो उन्हें
पकड़ना नामुमकिन है और ये
बात सच थी क्योंकि इसके
बाद कभी भी ब्रिटिश सरकार
उन्हें वापस पकड़ नहीं
पाए
काबुल पहुंचने के बाद
नेताजी सोवियत की एम्बेसी
में जाते हैं मदद मांगने
के लिए
लेकिन यहाँ से उन्हें कोई
मदद मिलती नहीं है
क्योंकि रुस्सियन्स को लग
रहा था कि वो एक ब्रिटिश
एजेंट है जो सोविएत्
यूनियन में इन्फिलिटरेट
करना चाह रहे हैं
फिर वो कोशिश करते हैं
जर्मन एम्बेसी को
कॅाटाक्ट करने की
अगर एक जर्मन मिनिस्टर
जो उस वक्त एम्बेसी में
मौजूद थे
वो जर्मन फॉरिन मिनिस्टर
को एक टेलीग्राम भेजते
हैं
फिफ्थ फेब्रूवेरी को
ये कहते हुए की सुभाष से
मिलने के बाद मैंने उसे
अडवाइस किया है की वो
मार्केट में छुपा हुआ रहे
अपने इंडियन दोस्तों के
साथ और मैं उसके बीहाफ पर
रुस्सियन एम्बेसेडर को
कॅाटाक्ट करता हूँ
कुछ दिन बाद नेताजी को
सन्देश मिलता है की अगर
उन्हें अफगानिस्तान से
आगे निकलना है तो उन्हें
इटालियन एम्बेसीडर से
मिलना चाहिए
22 फरवरी साल 1941 को ये
मीटिंग होती है
10 मार्च को बोस को कहा
जाता है की एक नया
इटालियन पासपोर्ट बनवालो
नया इटालियन पासपोर्ट
दिया जाता है, एक नई
इटालियन ऐडेंटिटी के साथ
ये फोटो लगी थी उनकी
इटालियन पासपोर्ट पर और
अब उनका नाम था ओरलैंडो
माजोता
इस बीच ब्रिटिश सरकार ने
इटालियन डिप्लोमैटिक
कम्यूनिकेशन को इंटरसेप्ट
किया था और उन्हें ये पता
लग गया था कि बोस काबुल
में है
उन्हें ये भी पता लग गया
कि वो जर्मनी जाने की सोच
रहे हैं
मिडिल ईस्ट के थ्रू
ब्रिटिश इन्टेलिजेन्स के
दो स्पेशल ऑपरेशन
एग्ज़िक्यटिव को एक काम
दिया जाता है
तुर्की में वो उसको ढूंढो
और उन्हें जर्मनी पहुंचने
से पहले ही मार डालें
लेकिन नेताजी एक कदम आ गए
थे
उन्होंने मिडिल ईस्ट के
थ्रू जाने वाला रास्ता
कभी लिया ही नहीं
उल्टा वो मॉस्का पहुँच गए
अपनी नई इटालियन ऐडेंटिटी
के साथ मॉस्को पहुँच कर
वो फाइनली एक ट्रैन
पकड़ते हैं
बर्लिन की ओर और सेकंड
अप्रैल 1941 को
पहुँच जाते हैं
जर्मनी की राजधानी बर्लिन
में यहाँ तीन मकसद थे
नेताजी के पहला एक इंडियन
गवर्नमेंट इन एक्साइल
सेटअप करना, दूसरा एक
जरिया ढूंढना
अपनी आवाज लोगों तक
पहुंचाने के लिए और तीसरा
एक आर्मी की स्थापना करना
जो बनी हो इंडियन्स से
वो इंडियन्स जो वॉर के
प्रिसनर्स रहे अब एक एक
करके देखते हैं कि कैसे
नेताजी ने इन चीजों पर
काम किया और कैसे उनकी
मुलाकात हुई
के तानाशाह हिटलर सबसे
बड़ा संघर्ष यहाँ पर था
कि जर्मनी एक डिप्लोमेटिक
रिकग्निशन दे इंडिया को
वो चाहते थे कि जर्मनी और
बाकी अक्सेस पावर्स
ऑफिशियली डिक्लेर कर दें
कि इंडिया एक आजाद देश और
इंडिया के इंडिपेंडेन्स
को वो अपना एक वॉर एम
बनाए
लेकिन जर्मनी ने ऐसा
डिक्लेरेशन कभी दिया नहीं
क्योंकि हिटलर इस ऐडिया
से कंफर्टब्ल नहीं था
अपनी इन फेमस किताब मैएंड
कॉम्प में हिटलर ने अपनी
राय बताई थी
इंडिया के ऊपर उसने लिखा
कि वो प्रशंसा करता है
ब्रिटिश सरकार की किस
तरीके से उन्होंने इंडिया
को डोमिनेट किया है और
अडमिनिस्टर्स किया है और
एक जर्मन ब्लड होने के
बाद इन स्पाइस ऑफ़
एव्रीथिंग उसने लिखा की
वो इंडिया को ब्रिटिश रूल
के अंडर ही देखना चाहता
है
इतना ही नहीं हिटलर ने
इंडियन फ्रीडम फाइटर्स का
भी मजाक उड़ाया
उन्हें एशियाटिक झग्लर्स
बुला कर इंडिया की पूरी
आजादी की लड़ाई हिटलर के
लिए एक मजाक थी
लेकिन फिर भी हिटलर
नेताजी सुभाष चंद्र बोस
का इस्तेमाल करना चाहता
था
इस वॉर में ब्रिटिश के
खिलाफ़ नेताजी भी इस बात
को जानते थे की जो
रिलेशनशिप है उनके और
नादज़ी जर्मनी के बीच में
वो ट्रांसक्शनल रिलेशनशिप
है
दोनों को यहाँ पर अपना
फायदा दिख रहा है इसलिए
ये रिलेशनशिप है नहीं तो
ये नहीं एग्ज़िस्ट करेगा
इस सोच से वो काम पर लग
जाते है
वो प्लेन्स बनाते है की
कैसे इंडिया अक्सेस
पावर्स के साथ कोलैबोरेट
कर सकता है
वो बर्लिन में फ्री
इंडिया सेंटर की स्थापना
करते हैं और फिर एक
मेमोरेंडम सबमिट करते हैं
वो हिटलर को ये दिखाते
हुए की
हिटलर अपनी आर्मी को लेकर
इंडिया पर हमला बोले ताकि
ब्रिटिश को वहाँ से हटाया
जा सके और ये ऐसा होगा कि
ब्रिटिश एम्पायर के दिल
पर हमला किया जा रहा हूँ
और चीजों को थोड़ा तोड़
मरोड़ के दिखाने की कोशिश
करते हैं
हिटलर को उकसाने के लिए
कि वो अपनी आर्मी को ले
जाकर
इंडिया में ब्रिटिश के
खिलाफ़ फाइट करें लेकिन
कोई पॉज़िटिव रिसाल्ट
इसका दिखता नहीं मेन रीसन
यही था कि हिटलर को कोई
परवाह नहीं थी इंडिया की
आजादी की लेकिन एक और
जर्मन था जो अक्चवली में
काफी इंटरेस्टेड था
वो उसकी मदद करने में
एडमिशन हेड ऑफ़ दी इंडिया
सेक्शन ऑफ़ दी फॉरिन ऑफिस
इन बर्लिन इनकी मदद से इस
फॉरिन ऑफिस को एक स्पेशल
इंडिया डिवीज़न बना दिया
जाता है
कुछ ही महीनों बाद सेकंड
नवंबर 1941 को बोस यहाँ
पर फ्री इंडिया सेंटर की
स्थापना करते हैं
इन फॅक्ट इसी सड़क पे वो
जो आप बिल्डिंग देख रहे
हैं वो ऑफिस हुआ करता था
फ्री इंडिया सेंटर आज के
दिन वहाँ पर बस एक कैफ़े
है
कोई नामो निशान नहीं है
की ये पहले कभी ऑफिस हुआ
करता था और दूसरी तरफ एक
स्पेन की एम्बेसी है
इस सेंटर पर होने वाली
पहली मीटिंग में छे
डिसीजंस लिए जाते हैं
पहला इस पूरे संघर्ष का
नाम होगा आजाद हिंद या
फ्री इंडिया
दूसरा यूरोप में इस
ऑर्गेनाइजेशन का नाम होगा
आजाद हिंद सेंटर
तीसरा हमारे देश का नेशनल
एंथम होगा
जन गणमान्य
चौथा हमारी इस मूवमेंट का
जो एम्बुलेंस है
वो ट्राइ कलर होगा
विथ दी स्प्रिंगिंग टाइगर
पांचवा इंडियन्स एक दूसरे
को ग्रेट करेंगे
जय हिन्द कह कर और छठा
सुभाष चंद्र बोस को टाइटल
दिया जाएगा नेताजी का
20 मई 1941 को नेताजी ने
एक डिटेल्ड प्लान सबमिट
किया था
जर्मन सरकार को की कैसे?
दुनिया भर में प्रोपेगंडा
पर काम किया जा सकता है
ब्रिटिश इम्पेरिअलिज़्म
के खिलाफ़
इसी प्लान का एक हिस्सा
था आजाद हिंद रेडियो
19 फरवरी 1942 नेताजी
डिसैड करते हैं की
ओरलैंडो मज़ोट की
ऐडेंटिटी बहुत हुई
इसे छोड़ा जाए और अपना
असली चेहरा दुनिया के
सामने लाया जाए
वो अपना पहला संदेश आजाद
हिंद रेडियो के जरिए
दुनिया के सामने पहुंचाते
हैं
थिस इस सुभाष चंद्र बोस
स्पीकिंग टु यू ओवर
आज़ाद हिन्द रेडियो जोकि
फेब्रूवेरी 1942 में जाकर
इंडियन लोगों के सामने भी
ब्रॉडकैस्ट होना चालू
होता है
सुभाष चंद्र बोस अपना
पहला एड्रेस इस रेडियो के
जरिए देशवासियों को देते
हैं
सभी लोग अपनी लड़ाई जारी
रखो
अक्सेस पावर्स जल्द ही इस
मिशन में हमारी मदद
करेंगी और ब्रिटिश
इम्पेरिअलिस्म के खिलाफ़
हम लड़ेंगे
और भाइयों, हमने जो आजादी
की लड़ाई छेड़ रखी है
उसे तब तक जारी रखना होगा
जब तक हमें मुकम्मल आजादी
हासिल ना हो
रेडियो के अलावा एक
मंथ्ली जर्नल भी बनाई
जाती है आजाद हिंद नाम से
जिसे मार्च 1942 में रोल
आउट किया जाता है
कुछ ही दिनों के अंदर
अंदर 5000 कॉपीस इसकी
जर्मनी में सर्कुलेट करी
जाती है
लेकिन तीसरा मकसद जो था
वहाँ पर प्रोब्लम्स आ रही
थी
थे कि जो वो आर्मी खड़ी
कर रहे हैं
उसे इंडियन नेशनल आर्मी
बुलाया जाए
लेकिन नाजी हुकूमत ने एक
नई इंडिपेंडेन्ट आर्मी को
मान्यता देने से इनकार कर
दिया था
इसलिए इस मिलिट्री यूनिट
का नाम रखा गया इंडियन
लीजियन
बस यहाँ पर 10,000 से
ज्यादा प्रीसनर्स
अवार्ड्स से मिले उनसे
बातचीत करें सबको तो वो
कन्विंस नहीं कर पाए
करीब आधे लोग कन्विंस हो
गए
उनकी आर्मी जॉइन करने के
लिए तो इंडियन लीजियन की
जो स्ट्रेंथ थी
वो करीब 5000 लोग आर्मी
छोटी जरूर थी
लेकिन कई महीनों में
ऐतिहासिक थी क्योंकि
नेताजी अलग अलग धर्मों के
अलग अलग कास्ट के लोगों
को इकट्ठा करने में
सक्सेसफुल हो गए थे
कैप्टन वाल्टर हार्बिश जो
उस वक्त ट्रेनिंग कैंप के
इन चार्ज थे
उन्होंने नोट किया हिज़
एक्सीलेंसी
नेताजी गोल्स वास् टु
पैरालाइज़ दी सेंचुरी
ओल्ड एस्म्स् रूटेड इन दी
इंडियन नेशनलिटीज़
रिलिजन्स एंड कास्ट
एंटी यूनाइटेड दी मेंबर्स
ऑफ़ बोथ दीज़ यूनिट्स इन
वॅन ग्रेट कामन एम 26
अगस्त साल 1942 इंडियन
लीजियन अपनी ओथ लेता है
और इसके साथ नेताजी अपने
सभी मकसदो को पूरा करने
में ऑलमोस्ट पूरी तरीके
से सक्सेसफुल रहते है
जर्मनी में सिवाए एक चीज़
के अक्सेस पावर्स अभी भी
इंडिया को इंडिपेंडेन्ट
डिक्लेर नहीं कर रहे थे
इसके पीछे कारण था हिटलर
का नेगेटिव अटिट्यूड
इंडियन्स को लेकर कुछ
महीने पहले मई 1942 में
सुभाष चंद्र बोस की
मुलाकात भी होती है
इस मुलाकात के बाद नेताजी
कन्विंस हो जाते हैं कि
हिटलर को प्रोपेगंडा
विक्टोरिएस् में ज्यादा
इन्ट्रेस्ट है
एस कंपेर्ड टु दी
मिलिट्री वाइज अक्चवली
मैं जीता जाए
इसलिए अब नेताजी की नजर
मुड़ती है जापान की ओर
अब तक ये खबर ऑलरेडी
जापान तक पहुँच चुकी थी
थी कि जर्मनी में एक
आर्मी बनाई जा रही है
इंडियन्स की ब्रिटिश को
इंडिया से बाहर फेकने के
लिए जापानीज़ प्राइम
मिनिस्टर हिदे की तोजू ने
इसका नोट लिया था
वो अर्ली 1942 से वै से
ही कहते आ रहे थे की समय
आ गया है इंडियन को खड़ा
होने का
ब्रिटिश रूल के खिलाफ़
यहाँ अगर आप वर्ल्ड वॉर
टू के किस्सों के बारे
में डीटेल में जानना
चाहते हैं तो कुक को ऐफ़
एम पर कई सारी ऑडियो
बुक्स मौजूद हैं
जैसे कि ये जोसेफ स्टालिन
के ऊपर
सोविएट यूनियन के लीडर
वर्ल्ड वॉर टू के दौरान
या फिर ये एलन ट्यूरिंग
के ऊपर एक ऐसे जीनियस
इंसान जिन्होंने जर्मन
कोर्ट को क्रॅक किया और
ब्रिटिश को मदद करी इस
वर्ल्ड वॉर में जनरलली भी
एक बड़ी ऑडियो लर्निंग का
प्लेटफार्म है जहाँ पर
आपको ऑलमोस्ट हर तरह के
टॉपिक पर ऑडियो बुक्स
सुनने को मिलेंगे
चाहे वो हिस्टरी हो,
पॉलिटिक्स हो
मैथोलॉजी हो या फिक्शन ही
क्यों ना हो
ऑडियो बुक्स तब सुनने के
लिए बेस्ट रहती है जब आप
वक कर रहे हो या कुछ और
घर में छोटे मोटे काम
करते हो
अगर आपने कुक को ऐफ़ एम
को अभी तक जॉइन नहीं किया
है तो नीचे डिस्क्रिप्षन
में एक स्पेशल 50% ऑफ का
कूपन जाकर चेक आउट कर
सकते हैं और अब टॉपिक पर
वापस आते हैं
फेब्रूवेरी 1942 में
जापान सिंगापुर में
ब्रिटिश को हरा देता है
और सिंगापुर को ऑक्यूपाइ
कर लेता है
करीब 40,000 हिंदुस्तानी
लोग जो ब्रिटिश की साइड
से *** रहे थे
सिंगापुर में जापान के
टेकओवर के बाद वो
प्रिज़नर्स ऑफ़ और बन
जाते हैं जापान के हत
यहाँ नेताजी को एक और
ऑपर्च्युनिटी दिखती है
क्यों ना इन लोगों को भी
अपनी आर्मी में शामिल
किया जाए?
इस सबके बीच अगस्त 1942
में महात्मा गाँधीजी
क्विट इंडिया मूवमेंट का
ऐलान करते हैं
इंडिया में भी लाखों की
भीड़ खड़ी हो जाती है
रेवोल्यूशन के लिए तैयार
ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ़
ये खबर जब नेताजी तक
पहुंचती है तो वो इसे
सुनकर बड़ा खुश होते हैं
आजाद हिंद रेडियो के जरिए
वो अपना संदेश देते हैं
सभी इंडियन्स गाँधीजी को
सपोर्ट करें
ये मूवमेंट इंडिया का नॉन
वायलेंट गोरिल्ला वारफेयर
है
इवन दो कुछ साल पहले
गाँधी जी और नेताजी की
विचारधारा में कुछ मतभेद
रहे थे
दोनों की राय इतनी मिलती
नहीं थी एक दूसरे से
लेकिन इस पॉइंट ऑफ़ टाइम
पर दोनों एक दूसरे के
सपोर्ट में खड़े थे
31 अगस्त 1942 जब नेताजी
को पता चलता है की सावरकर
और जिन्ना जैसे लोग क्विट
इंडिया मूवमेंट के खिलाफ़
है तो वो कुछ ऐसा कहते है
आजाद हिंद रेडियो पर आई
वुड रिक्वेस्ट मिस्टर
जिन्ना मिस्टर सावरकर एंड
ऑल दोज़ लीडर्स हूँ स्टिल
थिंक ऑफ़ ए कॉंप्रमाइज़
विथ दी ब्रिटिशर्स टु
रियलाइज फॉर वॅन्स ऑफ़ ऑल
दट
इन दी वर्ल्ड ऑफ़ टुमारो
दे वुड बी नो ब्रिटिश
एम्पायर जिन्ना और सावरकर
जैसे लीडर्स से कहना
चाहूंगा याद रख लो
आने वाले समय में कोई
ब्रिटिश हुकूमत नहीं रहने
वाली है
सर 1940 में गाँधी जी और
नेताजी की आखरी फेस टु
फेस मीटिंग हुई थी और इस
मीटिंग में गाँधी जी ने
नेताजी को कहा था
अगर आपके तरीके इंडिया को
आजादी दिलाने में
सक्सेसफुल रहते है तो
सबसे पहला कंग्रॅजुलेशन्स
का टेलीग्राम मेरी तरफ से
आएगा
इस इंसिडेंट को खुद
नेताजी ने अपनी किताब दी
इंडियन स्ट्रगल में लिखा
था तो इनके विचार और तौर
तरीके जरूर एक दूसरे से
अलग थे लेकिन एक दूसरे को
ये बहुत अडमाइर करते थे
गाँधी जी इंडिया के अंदर
संघर्ष कर रहे थे और
नेताजी इंडिया के बाहर से
संघर्ष कर रहे थे
एयठत फेब्रूवेरी 1943
नेताजी अपने दोस्त ए सी
एन नंबर को इंचार्ज बना
देते हैं इंडियन लीजियन
और आज़ाद हिंद सेंटर का
और वो जर्मनी छोड़कर निकल
पड़ते हैं जापान की ओर इस
बारी इनका रास्ता जमीन के
ऊपर से नहीं होता बल्कि
ये डुबकी लगाते हैं
पानी के अंदर
एक जर्मन सबमरीन में
बैठकर यु 180 जर्मन सबमरी
एक बार फिर से ये अपना
रूप बदलते हैं और बन जाते
हैं मिस्टर मसूदा
इसी किस्से की बात मैंने
वीडियो के शुरू में करी
थी
वैसे ये अकेले इंडियन
नहीं थे
सबमरीन में बैठने वाले
इनके साथ इंडियन लीजियन
के एक और लीडर थे अबीद
हसन सफरानी
ढ़ाई महीने बाद मैटागस्कर
की कोस्ट पर दोनों ही
सबमरीन बदलते हैं और एक
जापानी सबमरीन में इनका
स्वागत किया जाता है
एयठत मई 1943 ये सबमरीन
साबंग पहुंचती है
जो की आज के दिन के
इंडोनेशिया का हिस्सा है
वहाँ से फ्लाइट पकड़ते
हैं
टोक्यो की ओर और
सिक्सटीन्थ में को जापान
पहुँच जाते जापान के
प्रधानमंत्री टोजों से दो
बार मुलाकात होती है
नेताजी की
पहली 10 जून को और दूसरी
14 जून को
अपनी दूसरी मुलाकात में
नेताजी ओपनली उनसे पूछते
हैं, क्या जापान अपनी
अनकन्डिशनल मदद दे सकता
है?
इंडियन इंडिपेंडेन्स
मूवमेंट को मैं ये
कन्फर्म करना चाहता हूँ
कि अगर जापान हमारी मदद
करे तो वो नो स्ट्रिंग
अटैच्ड वाली मदद जर्मनी
में महीनों की कोशिश के
बाद भी हिटलर नहीं माना
था
लेकिन जापान में ये एक ही
सवाल काफी था तो जो
इमीडियेटली मान जाते हैं
कि वो नेताजी की मदद
करेंगे और जापान का ये
सपोर्ट पब्लिकली दुनिया
के सामने दिखाया जाता है
2 दिन बाद 16 जून को बोस
जापानीज़ डाइट के एटी
सेकंड एक्स्ट्रा आर्डिनरी
सेशन को अटेंड करने जाते
हैं
वहाँ पर प्राइम मिनिस्टर
एक ऐतिहासिक एड्रेस देते
हैं
इंडिया सदियों से
इंग्लैंड के रूल के अंदर
बना रहा है
हम यहाँ कंप्लीट
इंडिपेंडेन्स की
एस्पिरेशन दिखाते हैं और
कहते हैं कि जापान हर वो
चीज़ करेगा
जो करनी पड़े इंडिया को
इंडिपेंडेंस दिलाने के
लिए
मुझे यकीन है की इंडिया
की आजादी और प्रोस्पेरिटी
ज्यादा दूर नहीं है
इसके बाद सुभाष चंद्र बोस
की तरफ से एक स्टेटमेंट
दी जाती है जिसे वीडियो
पर रिकॉर्ड किया जाता है
बहुत कम असली वीडियो
फुटेज रिकॉर्ड पर है
हमारे पास नेताजी की ये
उनमें से एक है
देखिये ज़रा इंडिया एंड
जापान हॅव इन दी पास्ट
बीन बाउंड ब्य डे कल्चरल
साइज व्हिच अरे अबाउट 20
सेंचुरीज़ ओल्ड इन रीसेंट
टाइम्स दीज़ कल्चरल
रिलेशन्स हॅव बीन
इंटरप्टेड बिकॉज़ ऑफ़ दी
ब्रिटिश डोमिनेशन ऑफ़
इंडिया
इट इस फाइव ए सर्टेन दट
व्हेन इंडिया इस फ्री थिस
रिलेशन्स विल बी रिवाइज्ड
एंड विल बी डेस्टिनेटेड
इन थिस कनेक्शन आई शुड ऐड
दी स्टेटमेंट्स मेड ब्य
प्रीमियर जनरल तो जो ऑन
इंडिया सीन्स मार्च 19
142 एंड रिपीटेड ब्य हिं
बिफोर हिं पीरियड डाइट ऑन
दी सिक्सटीन्थ जून 19
143 हॅव मेड ए प्रोफाइल
इम्प्रेशन ऑन इंडिया एंड
आई हॅव ग्रेट वी हेल्प दी
इंडियन इंडिपेंडेन्ट
मूवमेंट जापान में सुभाष
चंद्र बोस को इन्वैट करने
वाले एक और फ्रीडम फाइटर
थे
रश बिहारी बोस नाम से या
एक इंटरेस्टिंग फॅक्ट
बताना चाहूंगा आपको की ये
अक्चवली में इंडियन नेशनल
आर्मी के लीडर थे
इस पॉइंट ऑफ़ टाइम पर
आपको सुन कर रहे ये कैसे
हो सकता है?
आई एन ए तो नेता जी ने
बनाई थी, लेकिन नहीं
आई ए ने अक्चवली में
नेताजी के जापान जाने से
पहले से ही एग्ज़िस्ट
करती थी
पहली इंडियन नेशनल आर्मी
को अक्चवली मैं बनाया गया
था जनरल मोहन सिंह के
द्वारा फेब्रूवेरी 1942
में जब सिंगापुर जापान के
हाथों गिरा
ये वाली आई एन ए डिसेंबर
1942 तक ऑपरेट करी
जिसके बाद मोहन सिंह ने
इस आर्मी को डिसबेंड कर
दिया क्योंकि जापानीज़ के
साथ इनकी मतभेद हो रही थी
इसके पीछे कारण ये था की
जापानीज़ चाहते थे की
इंडियन नेशनल आर्मी उनके
बीहाफ पर उनकी लड़ाई फाइट
करे
साउथ ईस्ट एस्टेशन में
वही काम जो ब्रिटिश कर
रहे थे
कई इंडियन्स ने ये करने
से मना कर दिया तो इसलिए
इन यूनिट्स को बंद कर
दिया गया और मोहन सिंह को
कस्टडी में ले लिया गया
जापानीज़ के द्वारा
यहाँ पर एंट्री होती है
रश बिहारी बोस की
वो एक लीडर का काम करते
हैं और आई एन ए को पूरी
तरीके से खत्म होने से
रोकते हैं
सुभाष चंद्र बोस रश
बिहारी बोस के साथ सेकंड
जुलाई को सिंगापुर
पहुंचते हैं और मालाओं से
उनका स्वागत किया जाता है
राम सिंह ठाकुरी के
द्वारा एक बेहतरीन गाना
जो उस वक्त बजाया गया जब
वो प्लेन से नीचे उतरे तो
एक और ओरिजिनल वीडियो आप
यहाँ देख सकते हैं
खुशहाली इन मैं आ गए भाषा
जानें हिंद हैं सुभाष सान
हिंद हैं सुभाष जी
सुभाष जी हो जाने हिन्द
और यहाँ पर बची हुई आई एन
इ कमॅंड सौंपी जाती हैं
नेताजी को ये एक बड़ा
ऐतिहासिक पल था क्योंकि
बहुत से इंडियन्स इकट्ठे
हुए थे सिंगापुर के पदांग
में
नेताजी को सुनने के लिए
और उनके द्वारा यहाँ पर
एक बहुत ही कमाल का भाषण
दिया जाता है
एक ऐसा भाषण जिसमें वो
चलो दिल्ली का नारा लगाते
हैं क्नॉइस
सिंगापुर में मौजूद इस
इंडियन नेशनल आर्मी में
करीब 13,000 जवान थे
नेताजी का प्लान था की
सबसे पहले इसे एक्सपैंड
किया जाए
पहले 50,000 जवान इकट्ठे
किए जाए और बाद में तीन
मिलियन लोगों की एक
स्ट्रांग आर्मी बनाई जाए
जापानी सरकार शॉक हो जाती
है
इस प्लान को सुनकर वो
कहते हैं
हम इतने लोगों को हथियार
नहीं दे सकते
हम सिर्फ 30,000 के करीब
लोगों को हथियार प्रोवाइड
कर सकते हैं
लेकिन नेताजी के लिए ये
लड़ाई सिर्फ हथियार से
लड़ने वाली नहीं थी
वो चाहते थे कि इवेंटली
देश में आम जनता भी आकर
इनकी आर्मी का हिस्सा बने
और फिर साथ में मिलकर
ब्रिटिश को धकेला जाए
बाहर यहाँ भी वही चीज़
देखी गई जो जर्मनी की
इंडियन लीजियन में देखी
गई थी
आई एन ए के सभी सोल्डर्स
अलग अलग धर्मों से आते थे
लेकिन रत्ती भर भी
डिस्क्रिमिनेशन नहीं देखा
गया
इन लोगों के बीच में
इंडियन नेशनल आर्मी का
मोटो तीन उर्दू शब्दों से
बनाया गया इत्तफाक
इत्तमाद और कुरबानी जिनका
मतलब है यूनिटी और
सैक्रिफ़ाइस
टोटल में पांच रेजिमेंट्स
में डिवाइड किया गया था
आई एन ए को और इन पांच
रेजिमेंट्स के नाम पांच
फ्रीडम फाइटर्स पर रखे गए
थे गाँधी
नेहरू, मौलाना आजाद, सुभाष
और रानी ऑफ़ झांसी
इवन जो आई एन ए का कैंपेन
पोस्टर बना था जीस पर चलो
दिल्ली लिखा हुआ था
उसमें फोटो लगी थी
महात्मा गाँधी और
जवाहरलाल नेहरू की एक और
पोस्टर पर कोट्स लिखे गए
थे सुभाष चंद्र बोस और
महात्मा गाँधी दोनों के
द्वारा
लेकिन आज के दिन कुछ लोग
हैं जो व्हाट्सएप पर झूठी
खबरें फैला कर ये दिखाना
चाहते हैं कि ये दोनों तो
एक दूसरे के खिलाफ़ थे
सेवंथ अगस्त 1943 में
नेताजी बड़े क्लियरली
कहते हैं
एक रेडियो एड्रेस में इवन
दो गाँधी नॉन वायलेंस को
सपोर्ट करते हैं लेकिन
इंडियन नेशनल आर्मी को वो
अपना पूरा सपोर्ट देने को
तैयार हैं और इससे भी
बड़ी चीज़ ये हैं की
गाँधीजी के फॉलोवर्स भी
हमें सपोर्ट देंगे
अपना सेकंड ऑक्टोबर 1943
एक और प्यारा संदेश नेता
जी गाँधीजी के लिए देते
हैं रेडियो के जरिए
महात्मा गाँधी ने जो
इंडिया को अपनी सर्विसेज
दी है वो इतनी अनोखी है
इतनी उनपरलिल्ड है की
उनका नाम सोने से लिखा
जाना चाहिए
हमारी नेशनल हिस्टरी में
हमेशा के लिए कोई भी
सिंगल इंसान अपनी पूरी
जिंदगी में इतना अचीव
नहीं कर सकता था
इन सरकमस्टान्सेज में
जितना उन्होंने अचीव किया
गाँधीजी नेता जी के इस
प्यार को वापस जताते है
उन्हें प्रिंस ऑफ़ दी
पैट्रियट्स का टाइटल देते
हुए 21 अगस्त 1943 नेताजी
प्रोविशनरी गवर्नमेंट ऑफ़
आजाद हिंद सेट अप करते है
सिंगापुर में इस
प्रविन्शअल सरकार के हेड
बनते है
ये कहते है की ये सरकार
कोई नॉर्मल सरकार नहीं है
हमारा मिशन अनोखा है
हम एक फाइटिंग
ऑर्गेनाइजेशन हैं और हम
जंग का ऐलान करेंगे
ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ़
दी स्काई इस रिवरबरेटेड
टु दी फुल थ्रोटेड शाउट्स
ऑफ़ जय हिंदू
अभी तक नेताजी के पास कोई
टेरिटरी नहीं थी
लेकिन जीतने भी इंडियन
लोग साउथ ईस्ट एशिया में
रहते थे
वो ऑफिशियली इनकी
जुरिस्डिक्शन के अंडर थे
सिंगापुर में स्थापित की
गई सरकार के पास अधिकार
था टैक्सेज कलेक्ट करने
का लॉस एनफोर्स करने का
और इवन सोल्डर्स रिक्रूट
करने का आर्मी के लिए
दो महीने बाद डिसेंबर
1943 में जापानीज़ आर्मी
अंडमान एंड निकोबार
आइलैंड से ब्रिटिश को
बाहर निकालने से
सक्सेसफुल रहती है और
जापानीज़ सरकार इस
टेरिटरी का पूरा कंट्रोल
सुभाष चंद्र बोस को
हैंडओवर कर देती है
ये पहली इंडियन टेरिटरी
बन जाती है
ब्रिटिश एम्पायर से आजाद
होने वाली 30 दिसंबर 1943
पोर्ट ब्लेयर में तिरंगा
भी लहराया जाता है
सुभाष चंद्र बोस के
द्वारा इनकी प्रोविशनल
सरकार एक इंडो जापानीज़
लोन अग्रीमेंट भी बनाती
है
1944 में जापान के साथ
नेगोशिएशन में ये इंसिस्ट
करते हैं कि इंडिया कोई
जापान का क्लाइंट नहीं है
बल्कि टेंपररी एक वीक को
इक्वल गवर्नमेंट और आर्मी
है
इसके तहत जापान इंडिया को
100 मिलियन यन का लोन
देता है
लेकिन नेताजी सिर्फ 10
मिलियन ही उसमें से
इस्तेमाल करते हैं
7 जनवरी 1944 नेताजी
प्रोविन्शनल सरकार के
हेडक्वार्टर्स को
सिंगापुर से बाहर निकाल
के रंगून बर्मा में ले
जाते हैं
ये इंडिया के अब बहुत
करीब थे
अगला टारगेट था इम्फाल और
कोहिमा को कैप्चर करना
मार्च 1944 में यहाँ एक
ऑफेंसिव शुरू होता है और
जमीन पर वॅन ऑफ़ दी
टूफेस्ट युद्ध बैटल्स लड़ी
जाती है
वर्ल्ड वॉर टू ये लड़ाई
साढ़े चार महीने तक चलती
है
थर्ड मार्च 1944 से लेकर
18 जुलाई 1944 तक करीब
1,00,000 आई एन ए और
जैपनीज़ सोल्जर्स एक तरफ
फाइट कर रहे थे और दूसरी
तरफ फाइट फाइट करने वाले
ब्रिटिश की तरफ से भी
इंडियन लोग ही थे
ब्रिटिश इंडियन आर्मी में
भर्ती हुए शुरुआत में आई
एन ए काफी सक्सेसफुल रहती
है
मणिपुर के मोइरांग में
तिरंगा लहराए जाता है
इंडियन मेन पर ये
पहली ट्राई कलर होस्टिंग
बनती है
लेकिन जल्द ही
चीजें बड़ी तेजी से
बिगड़ने लग जाती
नेताजी के पूरे प्लान पर
पानी बरस जाता है
मई के महीने में बारिश का
मौसम जल्दी आ गया था
इसकी वजह से बारिश और
कीचड़ में लड़ना मुश्किल
हो रहा था
दूसरी तरफ स्पेसिफिक ओशन
में जापानीज़ आर्मी
अमेरिका के हाथों लॉसिस
सह रही थी
तो आई एन इ की फोर्सस के
पास कोई ज्यादा एयर कवर
मौजूद नहीं था
ब्रिटिश के पास यहाँ एक
बड़ा क्रूशियल अडवांटेज
था
ब्रिटिश के जहाजों ने
सप्लाई लाइन्स पर हमला
किया
फुड खत्म होने लगे
आई एन ए के सोल्डर्स और
जापानीज़ सोल्जर्स यहाँ
पर मौजूद थे
उनके पास सिर्फ घास और
जंगल फ्लावर्स बचे खाने
के लिए जिंदा रहने के लिए
6 जुलाई 1944 गाँधी जी को
जेल से रिहा हुए करीब 2
साल हो चूके थे
नेताजी रेडियो पर एक
एड्रेस करते हैं
फादर ऑफ़ आवर नेशन इंडिया
के लिबरेशन की इस होली
वॉर में हमें आपकी
ब्लेसिंग की जरूरत है
ये पहली बार था कि गाँधी
जी को फादर ऑफ़ दी नेशन
करके किसी ने पुकारा था
यहीं से ही ये टाइटल आता
है दोस्त ये टाइटल और
किसी ने नहीं बल्कि खुद
सुभाष चंद्र बोस ने ही
दिया था
गाँधी जी को 10 जुलाई
1944 जापानीज़ इन्फॉर्म
करते हैं
नेताजी को की उनकी
मिलिट्री पोज़ीशन को अब
डिफेंड नहीं किया जा सकता
करने के अलावा और कोई
ऑप्शन नहीं है
इम्फाल के अटैक के फील
होने के बाद आई एन ए के
ट्रूफ्स मार्च करके वापस
बर्मा आ जाते है
21 अगस्त 1944 में नेताजी
पब्लिकली ऐक्नॉलज करते
हैं
इम्फाल कैंपेन के फेल्यूर
को ये कहते हैं कि बारिश
के मौसम के जल्दी आने की
वजह से और सप्लाई सिस्टम
में डिफेक्ट्स की वजह से
हमें यहाँ सेट बेक फेस
करना पड़ा
नेताजी इसके बाद वापस
सिंगापुर लौट जाते हैं और
आई एन ए को दुबारा से
बिल्ड करने की कोशिश करते
हैं
आगे क्या होता है?
इस मूवमेंट को आगे कैसे
कंटिन्यू रखा जाता है?
नेताजी और क्या क्या करते
हैं और आई एन ए के
सोल्जर्स कैसे एक और
इम्पोर्टेन्ट रोल निभाते
हैं आगे चल कर इंडिया के
इंडिपेंडेन्स इन सब चीजों
की बात करते हैं इस
वीडियो के अगले पार्ट में
क्योंकि काफी लम्बा हो
गया ये वाला वीडियो
अभी के लिए वीडियो पसंद
आया तो अब जाकर आप क्विट
इंडिया मूवमेंट वाला
वीडियो देख सकते हो
क्योंकि ये तो पूरी
इंडिया के बाहर की कहानी
थी 1942 से 1944 तक लेकर
लेकिन इंडिया में इस समय में क्या चल रहा था? बाकी और फ्रीडम फाइटर
क्या कर रहे थे?
इन सब चीजों की बात मैंने
करी है
इस वाले वीडियो में यहाँ
क्लिक करके देख सकते हो
बहुत बहुत धन्यवाद
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