नेताजी सुभाष चंद्र बोस | हिटलर के जर्मनी से जापान तक | पूर्ण जीवनी |indianstoryno1

नेताजी सुभाष चंद्र बोस | हिटलर के जर्मनी से जापान तक | पूर्ण जीवनी |indianstoryno1

 नमस्कार

209 फरवरी 1900 तैतालीस

जर्मनी के शहर की से एक

जर्मन सबमरीन रवाना होती

है

वैसे तो इसमें सभी नाबजी

जर्मनी के सोल्जर्स बैठे

हैं, लेकिन इन सबके बीच

मौजूद है एक इंडियन भी

एक इंडियन जिनका नाम है

इस सबमरीन को मिशन दिया

गया है

साउथ की तरफ ट्रैवेल करना

है

अफ्रीका के बगल से होते

हुए जाना

और मिस्टर मतसुधा को

ट्रांसफर करना एक

जापानीज़ सबमरीन ये काम

सुनने में आसान लगता है

लेकिन खतरों से बिल्कुल

भी खाली नहीं है

क्योंकि समुद्र भरा हुआ

है ब्रिटिश जहाजों से और

ये समय है वर्ल्ड वॉर टू

का

जब जर्मनी और जापान दोनों

डॉनन लड़ रहे है ब्रिटिश के

खिलाफ़ 26 अप्रैल 1900

तैतालीस करीब ढ़ाई महीने

के सफर के बाद जब ये

जर्मन सबमरीन की कॉस्ट के

पास पहुंचती है तो सामने

बड़ी नज़र आती है

लेकिन समुद्र इतना तूफानी

था की इन दोनों सब मरीन्स

का एक दूसरे के आस पास

आना बहुत खतरनाक हो सकता

था, तो अगले दो नों सब

मरीन्स पैरेलल चलती रहती

है

आगे फाइनली जाकर जब मौसम

साफ होता है तो मिश्र मत

सुदा सब मरीन से बाहर

निकलते है

एक छोटी सी राफ पदलिंग

करते हुए भीगते हुए वो

जापानी सबमरीन के पास

पहुंचते है

जहाँ पर कैप्टन मासाओ

तेरा ओका उनका स्वागत

करते है

एक सवाल आपके मन में

उठेगा की जर्मन और

जापानीज़ सुमरीन वर्ल्ड

वॉर टू के समय पर एक

इंडियन की क्यों मदद कर

रही है?

ऐसा इसलिए दोस्तों

क्योंकि मिस्टर मधसूदा और

कोई नहीं बल्कि हमारे

नेताजी सुभाष चंद्र बोस

है?

जाने अनजाने में इस

ऐतिहासिक जर्नी के दौरान

यह इतिहास के पहले इंडियन

भी बन जाते हैं

एक सबमरीन में सफर करने

वाला सुभाष चंद्र बोस

दोस्तों इंडिया के सबसे

महान फ्रीडम फाइटर्स में

से एक है और इनकी पूरी

कहानी ऐसे ही कमाल के

किस्सों से भरी हुई

कैसे ये ब्रिटिश हुकूमत

को चखमा देकर इंडिया

छोड़कर भागे?

जर्मनी गए, हिटलर से मिले,

रशिया गए

जापान गए जापानीज़ प्राइम

मिनिस्टर से मिले

सिंगापुर गए अपनी एक

आर्मी बनाई और इंडिया के

बाहर रह कर ब्रिटिश

हुकूमत के खिलाफ़ सबसे

बड़ी जंग छेड़ी

वी वांट टु इंडिया वी हॅव

टु फाइट दी एन एमी विथ

हिज़ ओन वेपन्स

आइये समझते है इनकी पूरी

दास्तां आज के इस वीडियो

में

अपनी कहानी की शुरुआत

करते हैं

साल 1939 से वो साल जब

वर्ल्ड वॉर टू की शुरुआत

हुई, इंडिया के बीहाफ पे

भी वॉर डिक्लेर कर दी

बिना किसी इंडियन से

कंसल्ट की है

कांग्रेस के लिए ये बड़ी

एम्ब्रिस्मेन्ट वाली बात

थी और गवर्नमेंट ऑफ़

इंडिया अक्ट के तहत

कांग्रेस के पास कुछ

मिनिस्ट्रीज का कंट्रोल

था तो कांग्रेस ने उन सभी

पोज़ीशन से रिसाइन कर दी

इस समय के बीच सुभाष

चंद्र बोस अपनी खुद की

पार्टी ऑर्गनाइज़ कर रहे

थे

दी फॉर्वर्ड ब्लॉक

हालांकि ये पार्टी

कांग्रेस के बीच से ही

निकली थी लेकिन साल 1940

तक आते आते इसको कांग्रेस

के मुख्य संगठन से अलग कर

दिया गया था

इसके पीछे दो कारण थे

पहला ये की सुभाष चंद्र

बोस

कुछ ज्यादा ही लेफ्टिस्ट

विचारधारा के बन रहे थे

जो कांग्रेस के बाकी

लीडर्स को पसंद नहीं आ

रहा था

इस चीज़ की बात मैंने

डीटेल में गाँधी वर्सस

वाले वीडियो में करी है

लिंक डिस्क्रिप्षन में

अगर आपने नहीं देखा है और

दूसरा कारण था की बोस्ट

चाहते थे सेकंड वर्ल्ड

वॉर का इस्तेमाल किया जाए

इंडिया के बेनिफिट के लिए

जल्दी से अक्शॅन लेना

चाहते थे और कांग्रेस से

अलग होना उनके लिए एक

नेसेसिटी बन गई थी

जुलाई 1940 कलकत्ता में

बोस 1 मार्च लीड कर रहे

थे, जिसके चलते उन्हें

ब्रिटिश हुकूमत के द्वारा

अरेस्ट कर लिया जाता है

जेल में रहकर वो सरकार की

ताकत को चैलेंज करते हैं

एक हंगर स्ट्राइक लॉन्च

करके रिलीज़ मी और आई शॉल

रेफुस टु लाइव उनकी तरफ

से सीधी अनाउंसमेंट करी

जाती है

1940 ही वास् लैंगुएजिंग

इन प्रेसेंट सो ही गिवेन

अल्टीमेटम टु दी ब्रिटिश

गवर्नमेंट एंड अंडर टूक ए

फास्ट अनुकिटेड देखते

देखते उनकी तबियत खराब

होने लगती है और एक ही

हफ्ते में सरकार डिसैड

करती है की उन्हें जेल से

निकाल कर हॉउस अरेस्ट पर

रख दिया जाए

सरकार नहीं चाहती थी की

उन पर ब्लामे आए

अगर सुभाष चंद्र बोस जेल

में मारे गए तो?

इसलिए उन्होंने सोचा कि

जब तक हेल्त खराब है तब

तक हॉउस अरेस्ट पर रखते

हैं

जैसे ही हेल्त ठीक होगी

वापस जेल में डाल देंगे

लेकिन नेताजी अपने अलग ही

प्लेन्स रच रहे थे

इनका प्लान था जर्मनी

जाना और जर्मन से मदद

मांगना ब्रिटिश के खिलाफ़

लड़ाई करने के लिए

लेकिन जर्मनी तक जाया

कैसे जाए?

वो पंजाब में मौजूद एक

कम्युनिस्ट ऑर्गेनाइजेशन

को कॅाटाक्ट करते हैं ये

जानने के लिए कि क्या कोई

तरीका है बॉर्डर पार करके

जर्मनी तक चुपके से जाने

का

उन्हें बताया जाता है कि

एक तरीका जरूर है

अफगानिस्तान के थ्रू अगर

एंटर किया जाए

वहाँ से सोविएट यूनियन

जाए जाए तो वहाँ से

जर्मनी जाए जा सकता है

16 जनवरी 1941 थे

करीब डेढ़ बजे जब पूरा

शहर सो रहा था तो नेताजी

चुपके से अपने घर से बाहर

निकलते हैं

अपने भतीजे शिशिर कुमार

बोस के साथ

उन्होंने एक डिस्ग्यूज़

पहनी हुई थी

वो प्रिटेंड कर रहे थे की

वो एक इन्षुरेन्स एजेंट

है जिनका नाम है मोहम्मद

ज़ियाउद्दीन

सिसिर के साथ अंधेरे में

ये रात भर ड्राइव करते

रहते हैं

करते रहते हैं और सुबह के

करीब साढ़े 8:00 बजे

धनबाद पहुंचते हैं

यहाँ ये एक रात से सिर के

भाई अशोक के घर में

बिताते हैं और अगले दिन

नजदीक के गोमो स्टेशन से

बोस काल का मेल की ट्रैन

पकड़ लेते हैं

ये रेल गाडी पहले दिल्ली

पहुंचती है और वहाँ से ये

गाड़ी बदलते हैं

पेशावर की ओर अगली ट्रैन

पकड़ते हैं

दी फ्रंटियर मेल नाम

पेशावर पहुँच कर इन्हें

रिसीव किया जाता है

फॉर्वर्ड ब्लॉक के

प्रिवेंशन लीडर मियान

अकबर शाह के द्वारा अगला

पड़ाव था ब्रिटिश राज़ के

इलाकों से पूरी तरीके से

बाहर निकलना

ऐसा करने के लिए ये अपना

रूप फिर से बदल लेते हैं

मोहम्मद जियाउद्दीन से ये

गूंगे और बहरे पठान बन

जाते हैं

यहाँ गूंगा और बहरा होना

इसलिए जरूरी था क्योंकि

बोस को पश्तो भाषा बोलनी

नहीं आती थी

प्राइमसी पखेर अगले पखेरस

से दे पखेर वो उसे जोड़

वो से खैर देना, न न मुँह

खुलते

राज़ भी खुल जाएगा तो

बॉर्डर पर कोई भी चेक

करने आए तो उनके साथ चलने

वाला पक्ष तो बता दे कि

ये बगल वाला पठान तो

गूंगा और बहरा है

ये एक और फॉर्वर्ड ब्लॉक

के लीडर भगत राम तलवार के

साथ ट्रैवेल करते हैं और

दोनों प्रिटेंड करते हैं

की अफगानिस्तान में अदद

शरीफ की श्राइन पर जा रहे

हैं

प्रार्थना करने की

इन्हें बोलना और सुनना आ

जाए

26 जनवरी साल 1941 गाड़ी

के जरिए पेशावर से निकलते

हैं ये और शाम तक

ब्रिटिश एम्पायर का

बॉर्डर क्रॉस हो चुका था

29 जनवरी की सुबह तक वो

अड्डा शरीफ पहुँच जाते

हैं और ट्रक्स और ट्रकों

की मदद से काबुल तक का

सफर पूरा करते हैं

क्नॉइस

कलकत्ता से काबुल जाने

में नेताजी को 15 दिन का

समय लगा

लेकिन ब्रिटिश सरकार को

इनके एस्केप के बारे में

इनके भाग निकलने के सिर्फ

12 दिन बाद ही पता चला

ऐसा इसलिए क्योंकि घर पर

मौजूद जो लोग थे वो

कॉन्स्टेंटली इनके कमरे

में खाना डेलिवर करने आते

थे

और इनके बाकी भतीजे इनका

खाना खा जाते थे

लोगों को लगता की सुभाष

जी अभी भी कमरे में ही है

खाना तो खाया जा रहा है

उनके लिए खाना डेलिवर

करवाया जा रहा है और ये

बात को इतना सीक्रेट रखा

गया की सुभाष जी की मम्मी

तक को नहीं पता था की वो

भाग निकले

घर से

ये सिर्फ 27 जनवरी को था

जब सुभाष चंद्र बोस के

खिलाफ़ एक केस सुना जाना

था कोर्ट में और जब वो

कोर्ट में पेश नहीं हुए

तो उनके दो भतीजों ने

पुलिस को इन्फॉर्म किया

की वो तो घर में है ही

नहीं

27 जनवरी को इनकी गायब

होने की खबर पहली बार

अखबार में पब्लिश होती है

आनंद बाजार पत्रिका और

हिंदुस्तान जिसके बाद

रॉयटर्स भी इसे उठा लेता

है और दुनिया भर में एक

खबर फैल जाती है

ब्रिटिश इन्टेलिजेन्स के

पास कई रिपोर्ट्स आती है

एक रिपोर्ट बताती है कि

वो किसी जापान जाने वाले

जहाज में है

दूसरी कुछ और बताती है

लेकिन कोई रिपोर्ट सच

नहीं थी

कलकत्ता से जापान जाने

वाले एक जहाज की तलाशी भी

ली जाती है

ब्रिटिश के द्वारा

लेकिन वो उसका कोई

नामोनिशान नहीं था

सुभाष ने अपने भतीजे से

सिर को बताया था की 4-5

दिन तक अगर ये खबर दबी

रहती है की वो भाग निकले

उसके बाद तो उन्हें

पकड़ना नामुमकिन है और ये

बात सच थी क्योंकि इसके

बाद कभी भी ब्रिटिश सरकार

उन्हें वापस पकड़ नहीं

पाए

काबुल पहुंचने के बाद

नेताजी सोवियत की एम्बेसी

में जाते हैं मदद मांगने

के लिए



लेकिन यहाँ से उन्हें कोई 

मदद मिलती नहीं है

क्योंकि रुस्सियन्स को लग

रहा था कि वो एक ब्रिटिश

एजेंट है जो सोविएत्

यूनियन में इन्फिलिटरेट

करना चाह रहे हैं

फिर वो कोशिश करते हैं

जर्मन एम्बेसी को

कॅाटाक्ट करने की

अगर एक जर्मन मिनिस्टर

जो उस वक्त एम्बेसी में

मौजूद थे

वो जर्मन फॉरिन मिनिस्टर

को एक टेलीग्राम भेजते

हैं

फिफ्थ फेब्रूवेरी को

ये कहते हुए की सुभाष से

मिलने के बाद मैंने उसे

अडवाइस किया है की वो

मार्केट में छुपा हुआ रहे

अपने इंडियन दोस्तों के

साथ और मैं उसके बीहाफ पर

रुस्सियन एम्बेसेडर को

कॅाटाक्ट करता हूँ

कुछ दिन बाद नेताजी को

सन्देश मिलता है की अगर

उन्हें अफगानिस्तान से

आगे निकलना है तो उन्हें

इटालियन एम्बेसीडर से

मिलना चाहिए

22 फरवरी साल 1941 को ये

मीटिंग होती है

10 मार्च को बोस को कहा

जाता है की एक नया

इटालियन पासपोर्ट बनवालो

नया इटालियन पासपोर्ट

दिया जाता है, एक नई

इटालियन ऐडेंटिटी के साथ

ये फोटो लगी थी उनकी

इटालियन पासपोर्ट पर और

अब उनका नाम था ओरलैंडो

माजोता

इस बीच ब्रिटिश सरकार ने

इटालियन डिप्लोमैटिक

कम्यूनिकेशन को इंटरसेप्ट

किया था और उन्हें ये पता

लग गया था कि बोस काबुल

में है

उन्हें ये भी पता लग गया

कि वो जर्मनी जाने की सोच

रहे हैं

मिडिल ईस्ट के थ्रू

ब्रिटिश इन्टेलिजेन्स के

दो स्पेशल ऑपरेशन

एग्ज़िक्यटिव को एक काम

दिया जाता है

तुर्की में वो उसको ढूंढो

और उन्हें जर्मनी पहुंचने

से पहले ही मार डालें

लेकिन नेताजी एक कदम आ गए

थे

उन्होंने मिडिल ईस्ट के

थ्रू जाने वाला रास्ता

कभी लिया ही नहीं

उल्टा वो मॉस्का पहुँच गए

अपनी नई इटालियन ऐडेंटिटी

के साथ मॉस्को पहुँच कर

वो फाइनली एक ट्रैन

पकड़ते हैं

बर्लिन की ओर और सेकंड

अप्रैल 1941 को

पहुँच जाते हैं

जर्मनी की राजधानी बर्लिन

में यहाँ तीन मकसद थे

नेताजी के पहला एक इंडियन

गवर्नमेंट इन एक्साइल

सेटअप करना, दूसरा एक

जरिया ढूंढना

अपनी आवाज लोगों तक

पहुंचाने के लिए और तीसरा

एक आर्मी की स्थापना करना

जो बनी हो इंडियन्स से

वो इंडियन्स जो वॉर के

प्रिसनर्स रहे अब एक एक

करके देखते हैं कि कैसे

नेताजी ने इन चीजों पर

काम किया और कैसे उनकी

मुलाकात हुई

के तानाशाह हिटलर सबसे

बड़ा संघर्ष यहाँ पर था

कि जर्मनी एक डिप्लोमेटिक

रिकग्निशन दे इंडिया को

वो चाहते थे कि जर्मनी और

बाकी अक्सेस पावर्स

ऑफिशियली डिक्लेर कर दें

कि इंडिया एक आजाद देश और

इंडिया के इंडिपेंडेन्स

को वो अपना एक वॉर एम

बनाए

लेकिन जर्मनी ने ऐसा

डिक्लेरेशन कभी दिया नहीं

क्योंकि हिटलर इस ऐडिया

से कंफर्टब्ल नहीं था

अपनी इन फेमस किताब मैएंड

कॉम्प में हिटलर ने अपनी

राय बताई थी

इंडिया के ऊपर उसने लिखा

कि वो प्रशंसा करता है

ब्रिटिश सरकार की किस

तरीके से उन्होंने इंडिया

को डोमिनेट किया है और

अडमिनिस्टर्स किया है और

एक जर्मन ब्लड होने के

बाद इन स्पाइस ऑफ़

एव्रीथिंग उसने लिखा की

वो इंडिया को ब्रिटिश रूल

के अंडर ही देखना चाहता

है

इतना ही नहीं हिटलर ने

इंडियन फ्रीडम फाइटर्स का

भी मजाक उड़ाया

उन्हें एशियाटिक झग्लर्स

बुला कर इंडिया की पूरी

आजादी की लड़ाई हिटलर के

लिए एक मजाक थी

लेकिन फिर भी हिटलर

नेताजी सुभाष चंद्र बोस

का इस्तेमाल करना चाहता

था

इस वॉर में ब्रिटिश के

खिलाफ़ नेताजी भी इस बात

को जानते थे की जो

रिलेशनशिप है उनके और

नादज़ी जर्मनी के बीच में

वो ट्रांसक्शनल रिलेशनशिप

है

दोनों को यहाँ पर अपना

फायदा दिख रहा है इसलिए

ये रिलेशनशिप है नहीं तो

ये नहीं एग्ज़िस्ट करेगा

इस सोच से वो काम पर लग

जाते है

वो प्लेन्स बनाते है की

कैसे इंडिया अक्सेस

पावर्स के साथ कोलैबोरेट

कर सकता है

वो बर्लिन में फ्री

इंडिया सेंटर की स्थापना

करते हैं और फिर एक

मेमोरेंडम सबमिट करते हैं

वो हिटलर को ये दिखाते

हुए की

हिटलर अपनी आर्मी को लेकर

इंडिया पर हमला बोले ताकि

ब्रिटिश को वहाँ से हटाया

जा सके और ये ऐसा होगा कि

ब्रिटिश एम्पायर के दिल

पर हमला किया जा रहा हूँ

और चीजों को थोड़ा तोड़

मरोड़ के दिखाने की कोशिश

करते हैं

हिटलर को उकसाने के लिए

कि वो अपनी आर्मी को ले

जाकर

इंडिया में ब्रिटिश के

खिलाफ़ फाइट करें लेकिन

कोई पॉज़िटिव रिसाल्ट

इसका दिखता नहीं मेन रीसन

यही था कि हिटलर को कोई

परवाह नहीं थी इंडिया की

आजादी की लेकिन एक और

जर्मन था जो अक्चवली में

काफी इंटरेस्टेड था

वो उसकी मदद करने में

एडमिशन हेड ऑफ़ दी इंडिया

सेक्शन ऑफ़ दी फॉरिन ऑफिस

इन बर्लिन इनकी मदद से इस

फॉरिन ऑफिस को एक स्पेशल

इंडिया डिवीज़न बना दिया

जाता है

कुछ ही महीनों बाद सेकंड

नवंबर 1941 को बोस यहाँ

पर फ्री इंडिया सेंटर की

स्थापना करते हैं

इन फॅक्ट इसी सड़क पे वो

जो आप बिल्डिंग देख रहे

हैं वो ऑफिस हुआ करता था

फ्री इंडिया सेंटर आज के

दिन वहाँ पर बस एक कैफ़े

है

कोई नामो निशान नहीं है

की ये पहले कभी ऑफिस हुआ

करता था और दूसरी तरफ एक

स्पेन की एम्बेसी है

इस सेंटर पर होने वाली

पहली मीटिंग में छे

डिसीजंस लिए जाते हैं

पहला इस पूरे संघर्ष का

नाम होगा आजाद हिंद या

फ्री इंडिया

दूसरा यूरोप में इस

ऑर्गेनाइजेशन का नाम होगा

आजाद हिंद सेंटर

तीसरा हमारे देश का नेशनल

एंथम होगा

जन गणमान्य

चौथा हमारी इस मूवमेंट का

जो एम्बुलेंस है

वो ट्राइ कलर होगा

विथ दी स्प्रिंगिंग टाइगर

पांचवा इंडियन्स एक दूसरे

को ग्रेट करेंगे

जय हिन्द कह कर और छठा

सुभाष चंद्र बोस को टाइटल

दिया जाएगा नेताजी का

20 मई 1941 को नेताजी ने

एक डिटेल्ड प्लान सबमिट

किया था

जर्मन सरकार को की कैसे?

दुनिया भर में प्रोपेगंडा

पर काम किया जा सकता है

ब्रिटिश इम्पेरिअलिज़्म

के खिलाफ़

इसी प्लान का एक हिस्सा

था आजाद हिंद रेडियो

19 फरवरी 1942 नेताजी

डिसैड करते हैं की

ओरलैंडो मज़ोट की

ऐडेंटिटी बहुत हुई

इसे छोड़ा जाए और अपना

असली चेहरा दुनिया के

सामने लाया जाए

वो अपना पहला संदेश आजाद

हिंद रेडियो के जरिए

दुनिया के सामने पहुंचाते

हैं

थिस इस सुभाष चंद्र बोस

स्पीकिंग टु यू ओवर

आज़ाद हिन्द रेडियो जोकि

फेब्रूवेरी 1942 में जाकर

इंडियन लोगों के सामने भी

ब्रॉडकैस्ट होना चालू

होता है

सुभाष चंद्र बोस अपना

पहला एड्रेस इस रेडियो के

जरिए देशवासियों को देते

हैं

सभी लोग अपनी लड़ाई जारी

रखो

अक्सेस पावर्स जल्द ही इस

मिशन में हमारी मदद

करेंगी और ब्रिटिश

इम्पेरिअलिस्म के खिलाफ़

हम लड़ेंगे

और भाइयों, हमने जो आजादी

की लड़ाई छेड़ रखी है

उसे तब तक जारी रखना होगा

जब तक हमें मुकम्मल आजादी

हासिल ना हो

रेडियो के अलावा एक

मंथ्ली जर्नल भी बनाई

जाती है आजाद हिंद नाम से

जिसे मार्च 1942 में रोल

आउट किया जाता है

कुछ ही दिनों के अंदर

अंदर 5000 कॉपीस इसकी

जर्मनी में सर्कुलेट करी

जाती है

लेकिन तीसरा मकसद जो था

वहाँ पर प्रोब्लम्स आ रही

थी

थे कि जो वो आर्मी खड़ी

कर रहे हैं

उसे इंडियन नेशनल आर्मी

बुलाया जाए

लेकिन नाजी हुकूमत ने एक

नई इंडिपेंडेन्ट आर्मी को

मान्यता देने से इनकार कर

दिया था

इसलिए इस मिलिट्री यूनिट

का नाम रखा गया इंडियन

लीजियन

बस यहाँ पर 10,000 से

ज्यादा प्रीसनर्स

अवार्ड्स से मिले उनसे

बातचीत करें सबको तो वो

कन्विंस नहीं कर पाए

करीब आधे लोग कन्विंस हो

गए

उनकी आर्मी जॉइन करने के

लिए तो इंडियन लीजियन की

जो स्ट्रेंथ थी

वो करीब 5000 लोग आर्मी

छोटी जरूर थी

लेकिन कई महीनों में

ऐतिहासिक थी क्योंकि

नेताजी अलग अलग धर्मों के

अलग अलग कास्ट के लोगों

को इकट्ठा करने में

सक्सेसफुल हो गए थे

कैप्टन वाल्टर हार्बिश जो

उस वक्त ट्रेनिंग कैंप के

इन चार्ज थे

उन्होंने नोट किया हिज़

एक्सीलेंसी

नेताजी गोल्स वास् टु

पैरालाइज़ दी सेंचुरी

ओल्ड एस्म्स् रूटेड इन दी

इंडियन नेशनलिटीज़

रिलिजन्स एंड कास्ट

एंटी यूनाइटेड दी मेंबर्स

ऑफ़ बोथ दीज़ यूनिट्स इन

वॅन ग्रेट कामन एम 26

अगस्त साल 1942 इंडियन

लीजियन अपनी ओथ लेता है

और इसके साथ नेताजी अपने

सभी मकसदो को पूरा करने

में ऑलमोस्ट पूरी तरीके

से सक्सेसफुल रहते है

जर्मनी में सिवाए एक चीज़

के अक्सेस पावर्स अभी भी

इंडिया को इंडिपेंडेन्ट

डिक्लेर नहीं कर रहे थे

इसके पीछे कारण था हिटलर

का नेगेटिव अटिट्यूड

इंडियन्स को लेकर कुछ

महीने पहले मई 1942 में

सुभाष चंद्र बोस की

मुलाकात भी होती है

इस मुलाकात के बाद नेताजी

कन्विंस हो जाते हैं कि

हिटलर को प्रोपेगंडा

विक्टोरिएस् में ज्यादा

इन्ट्रेस्ट है

एस कंपेर्ड टु दी

मिलिट्री वाइज अक्चवली

मैं जीता जाए

इसलिए अब नेताजी की नजर

मुड़ती है जापान की ओर

अब तक ये खबर ऑलरेडी

जापान तक पहुँच चुकी थी

थी कि जर्मनी में एक

आर्मी बनाई जा रही है

इंडियन्स की ब्रिटिश को

इंडिया से बाहर फेकने के

लिए जापानीज़ प्राइम

मिनिस्टर हिदे की तोजू ने

इसका नोट लिया था

वो अर्ली 1942 से वै से

ही कहते आ रहे थे की समय

आ गया है इंडियन को खड़ा

होने का

ब्रिटिश रूल के खिलाफ़

यहाँ अगर आप वर्ल्ड वॉर

टू के किस्सों के बारे

में डीटेल में जानना

चाहते हैं तो कुक को ऐफ़

एम पर कई सारी ऑडियो

बुक्स मौजूद हैं

जैसे कि ये जोसेफ स्टालिन

के ऊपर

सोविएट यूनियन के लीडर

वर्ल्ड वॉर टू के दौरान

या फिर ये एलन ट्यूरिंग

के ऊपर एक ऐसे जीनियस

इंसान जिन्होंने जर्मन

कोर्ट को क्रॅक किया और

ब्रिटिश को मदद करी इस

वर्ल्ड वॉर में जनरलली भी

एक बड़ी ऑडियो लर्निंग का

प्लेटफार्म है जहाँ पर

आपको ऑलमोस्ट हर तरह के

टॉपिक पर ऑडियो बुक्स

सुनने को मिलेंगे

चाहे वो हिस्टरी हो,

पॉलिटिक्स हो

मैथोलॉजी हो या फिक्शन ही

क्यों ना हो

ऑडियो बुक्स तब सुनने के

लिए बेस्ट रहती है जब आप

वक कर रहे हो या कुछ और

घर में छोटे मोटे काम

करते हो

अगर आपने कुक को ऐफ़ एम

को अभी तक जॉइन नहीं किया

है तो नीचे डिस्क्रिप्षन

में एक स्पेशल 50% ऑफ का

कूपन जाकर चेक आउट कर

सकते हैं और अब टॉपिक पर

वापस आते हैं

फेब्रूवेरी 1942 में

जापान सिंगापुर में

ब्रिटिश को हरा देता है

और सिंगापुर को ऑक्यूपाइ

कर लेता है

करीब 40,000 हिंदुस्तानी

लोग जो ब्रिटिश की साइड

से *** रहे थे

सिंगापुर में जापान के

टेकओवर के बाद वो

प्रिज़नर्स ऑफ़ और बन

जाते हैं जापान के हत

यहाँ नेताजी को एक और

ऑपर्च्युनिटी दिखती है

क्यों ना इन लोगों को भी

अपनी आर्मी में शामिल

किया जाए?

इस सबके बीच अगस्त 1942

में महात्मा गाँधीजी

क्विट इंडिया मूवमेंट का

ऐलान करते हैं

इंडिया में भी लाखों की

भीड़ खड़ी हो जाती है

रेवोल्यूशन के लिए तैयार

ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ़

ये खबर जब नेताजी तक

पहुंचती है तो वो इसे

सुनकर बड़ा खुश होते हैं

आजाद हिंद रेडियो के जरिए

वो अपना संदेश देते हैं

सभी इंडियन्स गाँधीजी को

सपोर्ट करें

ये मूवमेंट इंडिया का नॉन

वायलेंट गोरिल्ला वारफेयर

है

इवन दो कुछ साल पहले

गाँधी जी और नेताजी की

विचारधारा में कुछ मतभेद

रहे थे

दोनों की राय इतनी मिलती

नहीं थी एक दूसरे से

लेकिन इस पॉइंट ऑफ़ टाइम

पर दोनों एक दूसरे के

सपोर्ट में खड़े थे

31 अगस्त 1942 जब नेताजी

को पता चलता है की सावरकर

और जिन्ना जैसे लोग क्विट

इंडिया मूवमेंट के खिलाफ़

है तो वो कुछ ऐसा कहते है

आजाद हिंद रेडियो पर आई

वुड रिक्वेस्ट मिस्टर

जिन्ना मिस्टर सावरकर एंड

ऑल दोज़ लीडर्स हूँ स्टिल

थिंक ऑफ़ ए कॉंप्रमाइज़

विथ दी ब्रिटिशर्स टु

रियलाइज फॉर वॅन्स ऑफ़ ऑल

दट

इन दी वर्ल्ड ऑफ़ टुमारो

दे वुड बी नो ब्रिटिश

एम्पायर जिन्ना और सावरकर

जैसे लीडर्स से कहना

चाहूंगा याद रख लो

आने वाले समय में कोई

ब्रिटिश हुकूमत नहीं रहने

वाली है

सर 1940 में गाँधी जी और

नेताजी की आखरी फेस टु

फेस मीटिंग हुई थी और इस

मीटिंग में गाँधी जी ने

नेताजी को कहा था

अगर आपके तरीके इंडिया को

आजादी दिलाने में

सक्सेसफुल रहते है तो

सबसे पहला कंग्रॅजुलेशन्स

का टेलीग्राम मेरी तरफ से

आएगा

इस इंसिडेंट को खुद

नेताजी ने अपनी किताब दी

इंडियन स्ट्रगल में लिखा

था तो इनके विचार और तौर

तरीके जरूर एक दूसरे से

अलग थे लेकिन एक दूसरे को

ये बहुत अडमाइर करते थे

गाँधी जी इंडिया के अंदर

संघर्ष कर रहे थे और

नेताजी इंडिया के बाहर से

संघर्ष कर रहे थे

एयठत फेब्रूवेरी 1943

नेताजी अपने दोस्त ए सी

एन नंबर को इंचार्ज बना

देते हैं इंडियन लीजियन

और आज़ाद हिंद सेंटर का

और वो जर्मनी छोड़कर निकल

पड़ते हैं जापान की ओर इस

बारी इनका रास्ता जमीन के

ऊपर से नहीं होता बल्कि

ये डुबकी लगाते हैं

पानी के अंदर

एक जर्मन सबमरीन में

बैठकर यु 180 जर्मन सबमरी

एक बार फिर से ये अपना

रूप बदलते हैं और बन जाते

हैं मिस्टर मसूदा

इसी किस्से की बात मैंने

वीडियो के शुरू में करी

थी

वैसे ये अकेले इंडियन

नहीं थे

सबमरीन में बैठने वाले

इनके साथ इंडियन लीजियन

के एक और लीडर थे अबीद

हसन सफरानी

ढ़ाई महीने बाद मैटागस्कर

की कोस्ट पर दोनों ही

सबमरीन बदलते हैं और एक

जापानी सबमरीन में इनका

स्वागत किया जाता है

एयठत मई 1943 ये सबमरीन

साबंग पहुंचती है

जो की आज के दिन के

इंडोनेशिया का हिस्सा है

वहाँ से फ्लाइट पकड़ते

हैं

टोक्यो की ओर और

सिक्सटीन्थ में को जापान

पहुँच जाते जापान के

प्रधानमंत्री टोजों से दो

बार मुलाकात होती है

नेताजी की

पहली 10 जून को और दूसरी

14 जून को

अपनी दूसरी मुलाकात में

नेताजी ओपनली उनसे पूछते

हैं, क्या जापान अपनी

अनकन्डिशनल मदद दे सकता

है?

इंडियन इंडिपेंडेन्स

मूवमेंट को मैं ये

कन्फर्म करना चाहता हूँ

कि अगर जापान हमारी मदद

करे तो वो नो स्ट्रिंग

अटैच्ड वाली मदद जर्मनी

में महीनों की कोशिश के

बाद भी हिटलर नहीं माना

था

लेकिन जापान में ये एक ही

सवाल काफी था तो जो

इमीडियेटली मान जाते हैं

कि वो नेताजी की मदद

करेंगे और जापान का ये

सपोर्ट पब्लिकली दुनिया

के सामने दिखाया जाता है

2 दिन बाद 16 जून को बोस

जापानीज़ डाइट के एटी

सेकंड एक्स्ट्रा आर्डिनरी

सेशन को अटेंड करने जाते

हैं

वहाँ पर प्राइम मिनिस्टर

एक ऐतिहासिक एड्रेस देते

हैं

इंडिया सदियों से

इंग्लैंड के रूल के अंदर

बना रहा है

हम यहाँ कंप्लीट

इंडिपेंडेन्स की

एस्पिरेशन दिखाते हैं और

कहते हैं कि जापान हर वो

चीज़ करेगा

जो करनी पड़े इंडिया को

इंडिपेंडेंस दिलाने के

लिए

मुझे यकीन है की इंडिया

की आजादी और प्रोस्पेरिटी

ज्यादा दूर नहीं है

इसके बाद सुभाष चंद्र बोस

की तरफ से एक स्टेटमेंट

दी जाती है जिसे वीडियो

पर रिकॉर्ड किया जाता है

बहुत कम असली वीडियो

फुटेज रिकॉर्ड पर है

हमारे पास नेताजी की ये

उनमें से एक है

देखिये ज़रा इंडिया एंड

जापान हॅव इन दी पास्ट

बीन बाउंड ब्य डे कल्चरल

साइज व्हिच अरे अबाउट 20

सेंचुरीज़ ओल्ड इन रीसेंट

टाइम्स दीज़ कल्चरल

रिलेशन्स हॅव बीन

इंटरप्टेड बिकॉज़ ऑफ़ दी

ब्रिटिश डोमिनेशन ऑफ़

इंडिया

इट इस फाइव ए सर्टेन दट

व्हेन इंडिया इस फ्री थिस

रिलेशन्स विल बी रिवाइज्ड

एंड विल बी डेस्टिनेटेड

इन थिस कनेक्शन आई शुड ऐड

दी स्टेटमेंट्स मेड ब्य

प्रीमियर जनरल तो जो ऑन

इंडिया सीन्स मार्च 19

142 एंड रिपीटेड ब्य हिं

बिफोर हिं पीरियड डाइट ऑन

दी सिक्सटीन्थ जून 19

143 हॅव मेड ए प्रोफाइल

इम्प्रेशन ऑन इंडिया एंड

आई हॅव ग्रेट वी हेल्प दी

इंडियन इंडिपेंडेन्ट

मूवमेंट जापान में सुभाष

चंद्र बोस को इन्वैट करने

वाले एक और फ्रीडम फाइटर

थे

रश बिहारी बोस नाम से या

एक इंटरेस्टिंग फॅक्ट

बताना चाहूंगा आपको की ये

अक्चवली में इंडियन नेशनल

आर्मी के लीडर थे

इस पॉइंट ऑफ़ टाइम पर

आपको सुन कर रहे ये कैसे

हो सकता है?

आई एन ए तो नेता जी ने

बनाई थी, लेकिन नहीं

आई ए ने अक्चवली में

नेताजी के जापान जाने से

पहले से ही एग्ज़िस्ट

करती थी

पहली इंडियन नेशनल आर्मी

को अक्चवली मैं बनाया गया

था जनरल मोहन सिंह के

द्वारा फेब्रूवेरी 1942

में जब सिंगापुर जापान के

हाथों गिरा

ये वाली आई एन ए डिसेंबर

1942 तक ऑपरेट करी

जिसके बाद मोहन सिंह ने

इस आर्मी को डिसबेंड कर

दिया क्योंकि जापानीज़ के

साथ इनकी मतभेद हो रही थी

इसके पीछे कारण ये था की

जापानीज़ चाहते थे की

इंडियन नेशनल आर्मी उनके

बीहाफ पर उनकी लड़ाई फाइट

करे

साउथ ईस्ट एस्टेशन में

वही काम जो ब्रिटिश कर

रहे थे

कई इंडियन्स ने ये करने

से मना कर दिया तो इसलिए

इन यूनिट्स को बंद कर

दिया गया और मोहन सिंह को

कस्टडी में ले लिया गया

जापानीज़ के द्वारा

यहाँ पर एंट्री होती है

रश बिहारी बोस की

वो एक लीडर का काम करते

हैं और आई एन ए को पूरी

तरीके से खत्म होने से

रोकते हैं

सुभाष चंद्र बोस रश

बिहारी बोस के साथ सेकंड

जुलाई को सिंगापुर

पहुंचते हैं और मालाओं से

उनका स्वागत किया जाता है

राम सिंह ठाकुरी के

द्वारा एक बेहतरीन गाना

जो उस वक्त बजाया गया जब

वो प्लेन से नीचे उतरे तो

एक और ओरिजिनल वीडियो आप

यहाँ देख सकते हैं

खुशहाली इन मैं आ गए भाषा

जानें हिंद हैं सुभाष सान

हिंद हैं सुभाष जी

सुभाष जी हो जाने हिन्द

और यहाँ पर बची हुई आई एन

इ कमॅंड सौंपी जाती हैं

नेताजी को ये एक बड़ा

ऐतिहासिक पल था क्योंकि

बहुत से इंडियन्स इकट्ठे

हुए थे सिंगापुर के पदांग

में

नेताजी को सुनने के लिए

और उनके द्वारा यहाँ पर

एक बहुत ही कमाल का भाषण

दिया जाता है

एक ऐसा भाषण जिसमें वो

चलो दिल्ली का नारा लगाते

हैं क्नॉइस

सिंगापुर में मौजूद इस

इंडियन नेशनल आर्मी में

करीब 13,000 जवान थे

नेताजी का प्लान था की

सबसे पहले इसे एक्सपैंड

किया जाए

पहले 50,000 जवान इकट्ठे

किए जाए और बाद में तीन

मिलियन लोगों की एक

स्ट्रांग आर्मी बनाई जाए

जापानी सरकार शॉक हो जाती

है

इस प्लान को सुनकर वो

कहते हैं

हम इतने लोगों को हथियार

नहीं दे सकते

हम सिर्फ 30,000 के करीब

लोगों को हथियार प्रोवाइड

कर सकते हैं

लेकिन नेताजी के लिए ये

लड़ाई सिर्फ हथियार से

लड़ने वाली नहीं थी

वो चाहते थे कि इवेंटली

देश में आम जनता भी आकर

इनकी आर्मी का हिस्सा बने

और फिर साथ में मिलकर

ब्रिटिश को धकेला जाए

बाहर यहाँ भी वही चीज़

देखी गई जो जर्मनी की

इंडियन लीजियन में देखी

गई थी

आई एन ए के सभी सोल्डर्स

अलग अलग धर्मों से आते थे

लेकिन रत्ती भर भी

डिस्क्रिमिनेशन नहीं देखा

गया

इन लोगों के बीच में

इंडियन नेशनल आर्मी का

मोटो तीन उर्दू शब्दों से

बनाया गया इत्तफाक

इत्तमाद और कुरबानी जिनका

मतलब है यूनिटी और

सैक्रिफ़ाइस

टोटल में पांच रेजिमेंट्स

में डिवाइड किया गया था

आई एन ए को और इन पांच

रेजिमेंट्स के नाम पांच

फ्रीडम फाइटर्स पर रखे गए

थे गाँधी

नेहरू, मौलाना आजाद, सुभाष

और रानी ऑफ़ झांसी

इवन जो आई एन ए का कैंपेन

पोस्टर बना था जीस पर चलो

दिल्ली लिखा हुआ था

उसमें फोटो लगी थी

महात्मा गाँधी और

जवाहरलाल नेहरू की एक और

पोस्टर पर कोट्स लिखे गए

थे सुभाष चंद्र बोस और

महात्मा गाँधी दोनों के

द्वारा

लेकिन आज के दिन कुछ लोग

हैं जो व्हाट्सएप पर झूठी

खबरें फैला कर ये दिखाना

चाहते हैं कि ये दोनों तो

एक दूसरे के खिलाफ़ थे

सेवंथ अगस्त 1943 में

नेताजी बड़े क्लियरली

कहते हैं

एक रेडियो एड्रेस में इवन

दो गाँधी नॉन वायलेंस को

सपोर्ट करते हैं लेकिन

इंडियन नेशनल आर्मी को वो

अपना पूरा सपोर्ट देने को

तैयार हैं और इससे भी

बड़ी चीज़ ये हैं की

गाँधीजी के फॉलोवर्स भी

हमें सपोर्ट देंगे

अपना सेकंड ऑक्टोबर 1943

एक और प्यारा संदेश नेता

जी गाँधीजी के लिए देते

हैं रेडियो के जरिए

महात्मा गाँधी ने जो

इंडिया को अपनी सर्विसेज

दी है वो इतनी अनोखी है

इतनी उनपरलिल्ड है की

उनका नाम सोने से लिखा

जाना चाहिए

हमारी नेशनल हिस्टरी में

हमेशा के लिए कोई भी

सिंगल इंसान अपनी पूरी

जिंदगी में इतना अचीव

नहीं कर सकता था

इन सरकमस्टान्सेज में

जितना उन्होंने अचीव किया

गाँधीजी नेता जी के इस

प्यार को वापस जताते है

उन्हें प्रिंस ऑफ़ दी

पैट्रियट्स का टाइटल देते

हुए 21 अगस्त 1943 नेताजी

प्रोविशनरी गवर्नमेंट ऑफ़

आजाद हिंद सेट अप करते है

सिंगापुर में इस

प्रविन्शअल सरकार के हेड

बनते है

ये कहते है की ये सरकार

कोई नॉर्मल सरकार नहीं है

हमारा मिशन अनोखा है

हम एक फाइटिंग

ऑर्गेनाइजेशन हैं और हम

जंग का ऐलान करेंगे

ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ़

दी स्काई इस रिवरबरेटेड

टु दी फुल थ्रोटेड शाउट्स

ऑफ़ जय हिंदू

अभी तक नेताजी के पास कोई

टेरिटरी नहीं थी

लेकिन जीतने भी इंडियन

लोग साउथ ईस्ट एशिया में

रहते थे

वो ऑफिशियली इनकी

जुरिस्डिक्शन के अंडर थे

सिंगापुर में स्थापित की

गई सरकार के पास अधिकार

था टैक्सेज कलेक्ट करने

का लॉस एनफोर्स करने का

और इवन सोल्डर्स रिक्रूट

करने का आर्मी के लिए

दो महीने बाद डिसेंबर

1943 में जापानीज़ आर्मी

अंडमान एंड निकोबार

आइलैंड से ब्रिटिश को

बाहर निकालने से

सक्सेसफुल रहती है और

जापानीज़ सरकार इस

टेरिटरी का पूरा कंट्रोल

सुभाष चंद्र बोस को

हैंडओवर कर देती है

ये पहली इंडियन टेरिटरी

बन जाती है

ब्रिटिश एम्पायर से आजाद

होने वाली 30 दिसंबर 1943

पोर्ट ब्लेयर में तिरंगा

भी लहराया जाता है

सुभाष चंद्र बोस के

द्वारा इनकी प्रोविशनल

सरकार एक इंडो जापानीज़

लोन अग्रीमेंट भी बनाती

है

1944 में जापान के साथ

नेगोशिएशन में ये इंसिस्ट

करते हैं कि इंडिया कोई

जापान का क्लाइंट नहीं है

बल्कि टेंपररी एक वीक को

इक्वल गवर्नमेंट और आर्मी

है

इसके तहत जापान इंडिया को

100 मिलियन यन का लोन

देता है

लेकिन नेताजी सिर्फ 10

मिलियन ही उसमें से

इस्तेमाल करते हैं

7 जनवरी 1944 नेताजी

प्रोविन्शनल सरकार के

हेडक्वार्टर्स को

सिंगापुर से बाहर निकाल

के रंगून बर्मा में ले

जाते हैं

ये इंडिया के अब बहुत

करीब थे

अगला टारगेट था इम्फाल और

कोहिमा को कैप्चर करना

मार्च 1944 में यहाँ एक

ऑफेंसिव शुरू होता है और

जमीन पर वॅन ऑफ़ दी

टूफेस्ट युद्ध बैटल्स लड़ी

जाती है

वर्ल्ड वॉर टू ये लड़ाई

साढ़े चार महीने तक चलती

है

थर्ड मार्च 1944 से लेकर

18 जुलाई 1944 तक करीब

1,00,000 आई एन ए और

जैपनीज़ सोल्जर्स एक तरफ

फाइट कर रहे थे और दूसरी

तरफ फाइट फाइट करने वाले

ब्रिटिश की तरफ से भी

इंडियन लोग ही थे

ब्रिटिश इंडियन आर्मी में

भर्ती हुए शुरुआत में आई

एन ए काफी सक्सेसफुल रहती

है

मणिपुर के मोइरांग में

तिरंगा लहराए जाता है

इंडियन मेन पर ये

पहली ट्राई कलर होस्टिंग

बनती है

लेकिन जल्द ही

चीजें बड़ी तेजी से

बिगड़ने लग जाती

नेताजी के पूरे प्लान पर

पानी बरस जाता है

मई के महीने में बारिश का

मौसम जल्दी आ गया था

इसकी वजह से बारिश और

कीचड़ में लड़ना मुश्किल

हो रहा था

दूसरी तरफ स्पेसिफिक ओशन

में जापानीज़ आर्मी

अमेरिका के हाथों लॉसिस

सह रही थी

तो आई एन इ की फोर्सस के

पास कोई ज्यादा एयर कवर

मौजूद नहीं था

ब्रिटिश के पास यहाँ एक

बड़ा क्रूशियल अडवांटेज

था

ब्रिटिश के जहाजों ने

सप्लाई लाइन्स पर हमला

किया

फुड खत्म होने लगे

आई एन ए के सोल्डर्स और

जापानीज़ सोल्जर्स यहाँ

पर मौजूद थे

उनके पास सिर्फ घास और

जंगल फ्लावर्स बचे खाने

के लिए जिंदा रहने के लिए

6 जुलाई 1944 गाँधी जी को

जेल से रिहा हुए करीब 2

साल हो चूके थे

नेताजी रेडियो पर एक

एड्रेस करते हैं

फादर ऑफ़ आवर नेशन इंडिया

के लिबरेशन की इस होली

वॉर में हमें आपकी

ब्लेसिंग की जरूरत है

ये पहली बार था कि गाँधी

जी को फादर ऑफ़ दी नेशन

करके किसी ने पुकारा था

यहीं से ही ये टाइटल आता

है दोस्त ये टाइटल और

किसी ने नहीं बल्कि खुद

सुभाष चंद्र बोस ने ही

दिया था

गाँधी जी को 10 जुलाई

1944 जापानीज़ इन्फॉर्म

करते हैं

नेताजी को की उनकी

मिलिट्री पोज़ीशन को अब

डिफेंड नहीं किया जा सकता

करने के अलावा और कोई

ऑप्शन नहीं है

इम्फाल के अटैक के फील

होने के बाद आई एन ए के

ट्रूफ्स मार्च करके वापस

बर्मा आ जाते है

21 अगस्त 1944 में नेताजी

पब्लिकली ऐक्नॉलज करते

हैं

इम्फाल कैंपेन के फेल्यूर

को ये कहते हैं कि बारिश

के मौसम के जल्दी आने की

वजह से और सप्लाई सिस्टम

में डिफेक्ट्स की वजह से

हमें यहाँ सेट बेक फेस

करना पड़ा

नेताजी इसके बाद वापस

सिंगापुर लौट जाते हैं और

आई एन ए को दुबारा से

बिल्ड करने की कोशिश करते

हैं

आगे क्या होता है?

इस मूवमेंट को आगे कैसे

कंटिन्यू रखा जाता है?

नेताजी और क्या क्या करते

हैं और आई एन ए के

सोल्जर्स कैसे एक और

इम्पोर्टेन्ट रोल निभाते

हैं आगे चल कर इंडिया के

इंडिपेंडेन्स इन सब चीजों

की बात करते हैं इस

वीडियो के अगले पार्ट में

क्योंकि काफी लम्बा हो

गया ये वाला वीडियो

अभी के लिए वीडियो पसंद

आया तो अब जाकर आप क्विट

इंडिया मूवमेंट वाला

वीडियो देख सकते हो

क्योंकि ये तो पूरी

इंडिया के बाहर की कहानी

थी 1942 से 1944 तक लेकर

लेकिन इंडिया में इस समय में क्या चल रहा था? बाकी और फ्रीडम फाइटर

क्या कर रहे थे?

इन सब चीजों की बात मैंने

करी है

इस वाले वीडियो में यहाँ

क्लिक करके देख सकते हो

बहुत बहुत धन्यवाद

indianstoryno1