नमस्कार दोस्तों
एक लड़का जिसे अपने पिता का प्यार नहीं मिलता या तो उसका पिता उसकी जिंदगी से अब्सेंट रहता है या फिर उसके साथ बड़ी सख्ती से पेश आता है इसकी वजह से बच्चे के अंदर साइकोलॉजिकल प्रोब्लम्स डेवलॅप हो जाती है और जब वो बच्चा Baby होता है तो ये प्रोब्लम्स बहुत सीरियस बन जाती है ये कोई काल्पनिक कहानी नहीं है बल्कि कई रिसर्च पेपर्स ने इस चीज़ को साबित किया है दोस्तों कई स्टडीज़ दिखाती है पिता का अब्सेंट होना बच्चे का सेल्फ कॉन्फिडेंस कम कर देता है दूसरी कुछ स्टडीज़ दिखाती है हार्श पेरेंटिंग यानी बच्चों के साथ सख्ती से पेश आना उनके अंदर एग्रेसिव बेहेवियर जगा सकता है आप शायद सोचोगे कि यार हार्श पेरेंटिंग तो बड़ी कामन चीज़ है
ये कैसे हो सकता है? मैं कहूंगा कि अपने आसपास देखो लो सेल्फ कॉन्फिडेंस होना और एग्रेसिव बेहेवियर होना ये भी बड़ी कामन चीजें हैं लोगों में इतना ही नहीं कई रिसर्च पेपर्स तो ये भी दिखाते हैं कि एक कैरिंग फादर का ना होना एक कॉन्ट्रिब्यूटिंग फॅक्टर बन सकता है किसी के क्रिमिनल बनने में अब ये सोचकर देखो दोस्तों ऐसे सेंसिटिव टॉपिक पर अगर कोई फ़िल्म बनाए तो सोचने की जरूरत नहीं क्योंकि एक मास्टरपीस फ़िल्म हमारे सामने ऑलरेडी एग्ज़िस्ट करती है,नहीं नहीं उसकी बात नहीं कर रहा मैं मैं बात कर रहा हूँ दी व्हाइट रिबन की यह दोस्ती सृष्टि को गिनिश साइन ओम बिन बिन अवार्ड एस्टाग दी व्हाइट ट्रिब्यून इस फ़िल्म ने बेस्ट फ़िल्म का अवार्ड जीता 2009 के फ़िल्म फेस्टिवल में इसके अलावा इसने इंटरनेशनल क्रिटिक्स प्राइस, बेस्ट फ़िल्म ऐट यूरोपियन फ़िल्म अवार्ड्स 10 से ज्यादा जर्मन फ़िल्म अवार्ड्स और गोल्डन ग्लोब अवार्ड भी जीता बेस्ट फॉरम फ़िल्म के लिए लेकिन ऐसी लाजवाब फ़िल्म में सेंसिटिव टॉपिक पर इंडिया में भी बनी है जैसे की गोविंद निहलानी की अर्ध सत्य मैं क्या आपकी बीवी हूँ? मैं अपनी मर्जी से जीता हूँ किसी और की मर्जी का गुलाम नहीं हूँ मैं ये बात ध्यान में रख कर बात कीजिए या फिर विक्रम आदित्य मोटवाने की उड़ान फ़िल्म अगर इसे मेरे घर में रहना है मेरा कमाया हुआ खाना है पहनना है तो मेरे ही हिसाब से रहना पड़ेगा लेकिन मुझे फॅक्टरी में काम नहीं करने से पूछा कोई? इस मु्द्दे पर कई बड़ी और फेमस गाने भी बने जैसे की ये वाला इसके लिरिक्स में कहा गया है बच्चे पैदा करना तो लोगों को आता है लेकिन पापा बनना उन्हें नहीं आता अभी इमेजिन करके देखो दोस्तों अगर इसी सेंसिटिव कॉन्सेप्ट को कोई इनसेटिव डाइरेक्टर उठा ले एक ऐसा डाइरेक्टर जिसने रेग्रेसिव और माइसोजेनिस्टिक फ़िल्म बनाई है कबीर सिंह जैसी फिर क्या होगा? ये भी चीज़ हमें इमेजिन करने की जरूरत नहीं क्योंकि इसका नतीजा होगा ये अनिमल फ़िल्म क्नॉइस बॉलीवुड ने घटिया फिल्मों तो बहुत बनाई हैं लेकिन ये अनिमल फ़िल्म बड़ी खास हैं मेरा मानना हैं की ये एक ऐसा जो हमारे समाज के लिए कैंसर हैं इस बात को सुनकर कुछ लो आइ इन्स्टंट रिएक्शन होगा की इस तरीके से एक्सागरेट करना बंद कर फिल्मी तो है इतना वक बनने की जरूरत नहीं है और वैसे भी इसके अलावा कितनी वायलेंट फिल्मों आई है गैंग्स ऑफ़ वासेपुर, किल बिल फिक्शन उन फिल्मों का क्या?और वैसे भी फ़िल्म में वायलेंस देखने से कोई खुद से वायलेंट थोड़ी ना बन जाता है डाइरेक्टर की अपनी इंडीविजुअल मोरालिटी होती है, उसका अपना सब्जेक्टिव ओपिनियन होता है तुम किसी फ़िल्म को ऐसे क्रेन फेस्ट कैंसर कैसे बोल सकते हो? मैं कहूंगा रुको ज़रा सबर करो सब कुछ समझाऊंगा अच्छे से आपको इस वीडियो में और ना सिर्फ इस अनिमल फ़िल्म की प्रॉब्लम के बारे में बल्कि माहौल बना हुआ है यहाँ पर अल्फा मेल्स, फेमिनिज्म इस सारी चीजें समझते हैं आज के इस वीडियो में क्नॉइस दोस्तों मुझे यकीन है आपको याद होगा निर्भयता केस के बारे में 2012 का वो केस जिसकी खबर सुन कर पूरा देश शॉक्ड रह गया था उस वक्त एक महिला थी मधुमिता पांडे नाम से जो अपनी मास्टर की डिग्री कंप्लीट कर रही थी क्लिनिकल साइकोलॉजी में एक सवाल उनको बड़ा सता रहा था कोई भी इंसान ऐसा घिनौना काम कैसे कर सकता है? उन्होंने सोचा इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए क्यों ना ऐसे लोगों से खुद जाकर बात करी जाए जो ये काम करते हैं? बाढ़ जेल के कैदियों से बात करके एक सर्वे किया जाए
इसी के चलते उन्होंने जाकर बात करी 122 कन्विक्टेड रेपिस्ट और 65 कन्विच्तेद् मर्डर से जेल में बात करते वक्त इन्होंने एक बड़ा क्लियर डिफरेंस देखा, जो मर्डरर्स थे ज्यादातर मर्डरर्स में कुछ हद तक रिग्रेट की फीलिंग थी उन्हें अफसोस था की उन्होंने किसी की जिंदगी तबाह कर दी है कुछ को ज्यादा अफसोस था, कुछ को कम अफसोस था लेकिन ज्यादातर मर्डर में कोई ना कोई डिग्री ऑफ़ रिग्रेट जरूर था लेकिन जब उन्होंने रेपिस्ट से जाकर बात करी उनमे से ज्यादातर के मन में कोई भी रिग्रेट की फीलिंग नहीं थी कोई अफसोस नहीं था यही चीज़ हमने उस डॉक्युमेंट्री में भी देखी थी निर्भयता कांड पे बनाई गई जो डॉक्यूमेंट्री थी इंडियास डॉटर इसमें रेपिस्ट का जब इंटरव्यू किया गया तो उन्होंने कहा कि लड़की बाहर क्यों गई थी?रात को इतनी लेट अपने बॉयफ्रेंड के साथ? उन्हें उसे सबक सीखाना था इंटरव्यू में ये चीज़ बड़ी क्लियर थी कि उन्होंने जो किया उन्हें उस चीज़ का कोई रिग्रेट नहीं था ये देखकर मधुमिता के मन में सवाल आया कि इसके पीछे क्या कारण हो सकता है? यह रेप कॉन्विक्ट्स क्यों? अफसोस की कोई फीलिंग नहीं दिखाते इन्होंने दो क्वेश्चन एयर करवाए उनसे एम एम आई एस मल्टी कल्चरल मैस्कुलनिटी आइडियोलॉजी स्केल और एक अटिट्यूड टवॉर्ड्ज़ वीमेन टेस्ट इन सवालों के जवाब दिए तो पता चला कि इन लोगों की जो राय है औरतों के बारे में, वो हैली रेग्रेसिव है बहुत ही पिछड़ी हुई सोच है औरतों को लेकर मधुमिता की रिसर्च इकलौती नहीं थी इस चीज़ को लेकर ऐसी ही रिसर्च इंडिया के बाहर भी बहुत करी गई है सुसन ब्राउन मिलर ने अपनी 1975 की बुक अगेंस्ट आवर मेन वीमेन एंड रेप में यही चीजें बताई थी इन्होंने अपनी किताब में लिखा कि रेप डराने का का एक प्रोसेसर है अक्सर रेपिस्ट अपनी पावर एग्ज़ैक्ट करना चाहते हैं कि वो ऊपर है औरतें उनके नीचे है सूजन के अलावा रिचर्ड जॉनसन डेनियल एस्मेन और रेबका विस्नेन जैसी कई रिसर्चर्स की यही फाइन्डिंग्स रही है ये बलात्कार का कारण एक अत्यधिक की इच्छा नहीं होती बल्कि बलात्कारी तीन प्रकार के होते हैं पहले वो जो अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना चाहते हैं दूसरे वो जो क्रोध निकालने के लिए ये करते हैं और तीसरे जो सेडि स्त्क्रूर लोग होते हैं लेकिन इन तीनों में कामन बात ये है कि ये सब के सब औरतों को से इंफीरियर मानते हैं अगला सवाल ऑब्वियस्ली यहाँ पर ये उठता है की ऐसी रेग्रेसिव सोच आती कहाँ से? और इसका सही जवाब है दोस्तों हर जगह से एक कहावत है जो यहाँ अक्सर कही जाती है अब मैन इस दी प्रॉडक्ट ऑफ़ हिज़ एनवायरनमेंट इसका मतलब है की एक आदमी का बेहेवियर उसकी पर्सनालिटी उसकी ऐडेंटिटी उसके आस पास के माहौल को देख कर बनती है और ये माहौल हर चीज़ से बनता है पेरेंट्स जीस तरीके से आपका ख्याल रखते है आपके रिलेटिव्स का जो बर्ताव होता है आपको लेकर आपके स्कूल में जो टीचर जीस तरीके से बिहेव् करते है, आपके दोस्त जीस तरीके के होते है बाकी और जो आप
एक्सपीरियंस करते हो अपने आस पास Understanding
में इसके अलावा मास मीडिया का भी एक बड़ा फॅक्टर रहता है जो खबरों में आप सुनते हो जो किताबे आप पढ़ते हो जो रेडियो में आप सुनते हो जो टी वि पर अड्स आप देखते हो सोशल मीडिया पर जो आप चीजें देखते हो जो गाने आप सुनते हो और जो फिल्मों आप देखते हो इन सब चीजों का एक असर पड़ता है जिससे की एक इंसान की ऐडेंटिटी बनती है, उसका बर्ताव दिखता है कुछ चीजें आपकी कॉन्शॅस कंट्रोल में होती है जिन्हें आप कंट्रोल कर सकते हो जैसे की क्या पढ़ना है क्या देखना है लेकिन सभी चीजों का एक सब कॉन्शॅस असर पड़ता है आपके दिमाग पर, जिसका आपको शायद पता भी नहीं चलता हो कुछ लोग इस बात का काउंटर करेंगे ये कह कर के देखो मैं तो गैंगस्टर की फिल्मों देखता हूँ लेकिन मैं तो गैंगस्टर बना नहीं इस फ़िल्म के डाइरेक्टर संदीप वंगा रेड्डी ने भी सेम आर्गुमेंट दिया था एक इंटरव्यू का अनुपमा चोपड़ा ने उनसे पूछा की कबीर सिंह जैसी फिल्मों का समाज पर क्या इम्पैक्ट होता है? तो उन्होंने जवाब में कहा कि उन्होंने गैंगस्टर फिल्मों देखी हैं लेकिन वो तो कोई एक गैंगस्टर बने नहीं उसे देखने के बाद आई ग्रो अप वाचिंग गैंग लीडर परिन्दा हम लखन तेजा एंड मी एंड मैं ब्रदर नेवर बिकेम गैंगस्टर्स आफ्टर वॉचिंग पर अब देखो दोस्तों से वही बात हैं जैसे कुछ लोग कहते हैं ना की देखो मैं तो डीप फ्राइड छोले भटूरे खाता हूँ जिससे की हार्ट अटैक का रिस्क बढ़ जाता हैं कोलेस्ट्रॉल खराब हो जाता हैं लेकिन मैं तो अभी जिंदा हूँ मुझे तो कोई हार्ट अटैक हुआ नहीं पॉइंट यहाँ पर यहाँ पर ये हैं की एक प्लेट डीप फ्रैट छोले भटूरे खाने से किसी को हार्ट अटैक नहीं आएगा लेकिन दिन प्रतिदिन हफ्ते भर हफ्ते साल भर साल अगर डीप फ्राइड चीज़े खाते रहोगे तो जरूर किसी दिन हार्ट अटैक आ सकता हैं और हार्ट अटैक का रिस्क बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा अगर हार्ट अटैक नहीं भी आया तो सिमिलरली अगर कोई कहता है कि मैं तो देखो 1घंटे के लिए जिम हो के आया आज, लेकिन मेरा वेइट तो कम हुआ नहीं यहाँ बदलाव आता है छोटे छोटे इन्क्रीमेंटल चेंजस से बूंद बूंद से ही पूरा सागर बनता है सेम चीज़ फिल्मों के बारे में भी कही जा सकती है एक गैंगस्टर की फ़िल्म देख कर कोई गैंगस्टर नहीं बन जाता ना ही कोई एक अच्छी फ़िल्म देख कर महात्मा बन जाता है लेकिन छोटा छोटा इंक्रीमेंटल चेंज जो आता है वो ऐड अप होता चले जाता है जिंदगी में चाहे वो पॉज़िटिव हो या नेगेटिव हो, वेइट लॉस वाले वीडियो में मैंने ढेर सारे अलग अलग फॅक्टर्स की बात करी थी डाइट एक्सर्साइज़ स्लीप स्ट्रेस फ्री होना मैंने कहा था वेइट लॉस इन सभी फॅक्टर्स का एक कॉम्बिनेशन होता है सिमिलरली एक बच्चे की जिंदगी में अगर सब कुछ अच्छा चल रहा है उसके पेरेंट्स उसका ढंग से ख्याल रखते है उसके टीचर्स उसे प्यार से पढ़ाते है उसके दोस्त बहुत अच्छे है, उ से आदते है अच्छी किताबें पढ़ने की वो एजुकेटेड है लॉजिक से सोचता है इंटेलेक्ट से काम करता है तो एक प्रोब्लमैटिक फ़िल्म देखने से कुछ फरक नहीं पड़ने वाला लेकिन यही मैं कहना चाहूंगा एक उल्टा केस इमेजिन करो एक लड़का है मुन्नु, जिसके घर में उसके पिता उसकी माँ को मारते पीटते उसकी बहन को बाहर पार्टी करने जाना अलाउड नहीं है लेकिन उ से खुद अलाउड यूट्यूब पर मुन्नु छपरी यूट्यूब को फॉलो करता है जो औरतों को ऑब्जेक्टिफाई करता है कहते है की देखो लड़कियों में दिमाग नहीं होता उनका काम बस घर पे काम करना होता है इंस्टाग्राम पर मुन्नु अन्ड्रॉइड जैसे लोगों को फॉलो करता है जो टॉक्सिनिटी और मिसॉजनी के सिंबल बने बैठे सिमिलर बात है वही से भी सुनता Mostly अलावा जब मुन्नु गाने सुनता है तो गानों में भी यही और तो ं की ऑब्जेक्टिविकेशन सुनने को मिलती है मैं तो तंदूरी मुर्गी हूँ यार घटकाले मुझे अल् को हल से हनी सिंह के गाने कभी लिरिक्स पर ध्यान दिया है मैं हूँ वीमेनिसेर मुझसे अकेले में मत मिल सिलिकॉन वाली लड़ की को मैं पकड़ ता नहीं ब्राउन गर्ल्स से मेरा दिल भरता नहीं मैं हूँ शेर घास चरता नहीं तू है जानता मैं हूँ शिकारी तुझे खा जाऊंगा सारी की सारी ये लिरिक्स बोलते हुए भी अजीब सा लग रहा है यूनीसेफ ने अमेरिकन साइ को लॉजिकल असोसिएशन की एक ये रिपोर्ट पब्लिश करी थी जिस में बताया कि कैसे मास मीडिया में औरतों की ऑब्जेक्टिविकेशन उनके खिलाफ़ वायलेंस का का रण बन जाती है जब अपने घर में होता है तो पीछे बैकग्राउंड में न्यूस चैनल चल रहे हो ते हैं वहाँ वो किसी पॉलिटिशियन को कहते हो सुनता है कि लड़कों से गलतियाँ हो जाती है लड़कियों को छोटे कपड़े नहीं पहनने चाहिए लड़कियों को रात में घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए फिर टी वि पर बीच में जब अड्स आती है ं तो उन अड्स में भी यही औरतों की ऑब्जेक्टिविकेशन दिखाई जाती हैं एक परफ्यूम की ऐड जिसमे एक लड़की आ रही हैं और चार लड़के कहते है ं की एक एक शॉट ले लड़की घबरा जाती है ं और फिर दिखाया जाता है ंये तो परफ्यूम की बात क रहे हैं और इन सब ची जो ं के बाद जब मुन्नु सिनेमा हॉल में कोई फ़िल्म देखने जा ता हैं तो उसे अनिमल जैसी फ़िल्म देखने को मिलती है ं एक ऐसी फ़िल्म जिसमें प्रोतगोनिस्ट अपनी पत्नी का हाथ मरोड़ देता है, कभी गला पकड़ लेता है कभी उस पर बंदूक तान देता है कुछ लोग कह रहे हैं कि इसमें कौन सी बड़ी बात है?उसकी पत्नी ने भी तो उसको थप्पड़ मारा लेकिन यही तो बात है कि आदमी औरत को या औरत आदमी को क्यों मारे? किसी भी साइड से हो रहे वायलेंस को क्यों ग्लॉरिफाई किया जाए? क्योंकि संदीप वांगा के अनुसार प्यार प्यार नहीं होता, जब तक आप अपने लवर को मार नहीं सकते मजाक नहीं कर रहा मैं संदीप गांगु ने अक्चवली मैं ये चीज़ कही थी एक इंटरव्यू में सीरियसली व्हेन यू अरे डीप्ली इन लव इफ यू डोन्ट हॅव दी लिबर्टी ऑफ़ स्लिपिंग ईच ऑदर देन आई डोन्ट सी एनीथिंग देर फ़िल्म में रन विजय इतने मास मर्डर करता है लेकिन उस की पत्नी गीतांजलि कभी उसे छोड़ने का नहीं कहती लेकिन जब वो एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर कर लेता है तो वो रन विजय को कहती है कि उस लड़की को जाकर मार दे, पागल हो गया तू इलाज करा ले अपना रणविजय को फ़िल्म में एक बेटी का बाप दिखाया है लेकिन उस के बावजूद वह डिस्कंफर्ट का मजाक उड़ाता है अपनी वाइफ को कहता है कि ये मर्दों की दुनिया है अपनी लवर को कहता है कि मुझसे मोहब्बत है तो मेरा जूता चाट कर दिखा फ़िल्म में दिखाया गया है कि ये बंदा डॅडी इश्यूस से सफर कर रहा है इससे अपने बाप का प्यार नहीं मिला लेकिन यही रन विजय अपने बच्चों को सेम तरी के से इग्नोर करता है अब इन सारी चीजों को फिर भी कुछ हद तक जस्टिफाई किया जा सकता था अगर फ़िल्म में दिखाया जाता कि ये एक मेंटली इल इंसान था और बाद में इसका हृदय परिवर्तन हो गया ले कि न ऐसा कुछ भी नहीं है फ़िल्म के आखिर में कोई रिडेम्पशन नहीं दिखाई गई है रणबीर कपूर की अक्टिंग में कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे देख कर लग सके की एक में टली इंसान था इसलिए ये सब एक प्रवचन की तरह दी जाती है फ़िल्म का हीरो कुछ ऐसा है जो इस सारी चीजें करता है और पूरे इस कॉन्फिडेंस के साथ अपने आप को जैसे अल्फा मेल की तरह दिखाया जा रहा हो मुन्नु की जिंदगी में पूरा माहौल ही ऐसा है हर जगह रेग्रेसिव व्यूस रेग्रेसिव व्यूस और तों की ऑब्जेक्टिविकेशन औरतों को गलत तरीके से ट्रीट किया जाना और इसके बाद कोई कहता है की एक फ़िल्म से क्या फरक पड़ता है, एक फ़िल्म से फर्क नहीं पड़ता पूरा का पूरा माहौल ही यहाँ पर बिगड़ा हुआ है और इस माहौल को बर कर ार रख ने का काम कर रही है ऐसी फिल्मों इसलिए मैं कहता हूँ कि अनिमल जैसी फिल्मों समाज के लिए कैंसर है ये चीज़ तो वै से आपको फ़िल्म का पोस्टर देखकर ही पता लग जानी चाहिए जब फ़िल्म का हीरो यहाँ पर कैंसर को प्रोमोट करेगा स्मोक करते हुए तो और क्या एक्सपेक्ट कर सकते हो जीस दिन ये फ़िल्म रिलीज़ हुई थी उस दिन एक और फ़िल्म रिलीज़ हुई थी सि ने मा हॉल्स में सैम बहादुर हमारे फील्ड मार्शल सैम मानक शो के ऊ पर दोनों फिल्मों में कॉन्ट्रास्ट देखो कितना बड़ा है हम पर सैम बहादुर एक ऐसे जाबाज़ असल जिंदगी के हीरो जो देश के लिए लड़े इंसानियत के लिए लड़े इन्होंने बांग्लादेश में हो रहे एक भयं कर जेनोसिड पर रोक लगाई खुद ही सोच कर देखो मैस्क्लिनिटी का सिंबल यहाँ पर सेम बहादुर जैसे लोगों को हो ना चाहिए या फिर कबीर सिंह या रणविजय जैसे करैक्टर्स को इन की जिंदगी के बारे में आप और जा नना चाहते है ं तो कुक को ऐफ़ एम पर एक बढ़िया ऑडियो बुक है 12 एपिसोड की फील्ड मार्शल सैम मानिक शो इन हिन्दी कुक को ऐफ़ एम एक बेहतरीन ऑडियो लर्निंग का प्लेटफार्म है जहाँ पर आपको ढेर सारी ऑडियो बुक्स मिलेंगी हिस्टरी गेओ पॉलिटिक्स फिक्शन मैंथोलॉजी ऑलमोस्ट हर तरह के टॉपिक्स पर अगर आपने अ भी तक को जॉइन नहीं किया है तो नीचे डिस्क्रिप्षन में जाकर चेक आउट करिए जहाँ पर आपको 50% ऑफ का एक कूपन को ड भी मिलेगा आप टॉपिक पर वापस आते हैं अच्छा इस फ़िल्म की कहानी पर आए तो कई साल पहले मारियो ने एक नॉवेल लिखी थी दी गॉड फादर नाम से फेमस डाइरेक्टर फ्रांसिस फ़ोर्ट कोपोला ने इस एक किताब पर तीन फिल्मों बनाई गॉडफादर के नाम से जो बड़ी हिट हुई लेकिन उस के बाद से इसे कितनी ही इंडियन फिल्मों ने कॉपी कि या है? धर्मात्मा नायकन, दयावान, आतं की सरकार मलिक और अब अनिमल भी ये फ़िल्म कितनी ओरिजिनल है और कितनी कॉपीड है आप खुद ही डिसैड कर सकते हो गॉडफादर का जो प्लॉट है, उसमें गैंगस्टर होता है वीटो नाम से जो अपना बिज़नेस एम्पायर चला रहा होता है उस का छोटा बेटा माइकल उस से बाहर रहता है अमेरिका में लेकिन जब एक असोसिएशन एटेम्पट किया जाता है वीटो के ऊपर तो माइकल वापस लौटता है और इस गैंग को जॉइन करता है उसे देखकर पता चलता है कि उस के बहन के हज़्बंड कार्लो एक गद्दार है तो वो कारलो को मरवा देता है और उसके बाद वो बा की गैंग्स के साथ लड़ने लग जाता है गॉडफादर जो फ़िल्म थी वो गैंगस्टर की थी लेकिन संदीप बांगर रेड्डी ने सोचा कि मुझे एक 300
400,00,00,000 कमाने वाली फ़िल्म बनानी है तो हो ं ने अपनी पुरानी फ़िल्म कबीर सिंह का जो कॉन्सेप्ट था वही कॉपी कर लिया एक ऐसा प्रोतगुनिस्ट हो गा अपनी फ़िल्म में जो नायक नहीं खल ना यक हूँ मैं वाली बात करेगा शार्ट टेम्पर्ड लड़का जिसे बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता है, अल्फा मेल जैसा दिखता है वो बहुत ज्यादा स्मोक करता है और मुझे ऐसे बंदे को बड़ा कूल दिखाना है और फिर जब पता होता है की फ़िल्म में वायरलेस दिखाने से फ़िल्म ज्यादा चलेगी तो वायलेंस को और बढ़ा दो जितना ज्यादा खून खराब हो सके उतना खून खराबा दिखाओ अनुपमा चोपड़ा के साथ इंटरव्यू के दौरान संदीप ने कहा था की उनकी अगली फ़िल्म और भी ज्यादा वायलेंट हो गी कुछ लोग कबीर सिंह को वायलेंट बुलाते है लेकिन वो दिखा देंगे की और वायलेंट फ़िल्म कितनी वायलेंट हो सकती है इट विल बी मोर बिकॉज़ देर इस गाइस अरे कालिंग थिस फ़िल्म एस ए वायलेंट फ़िल्म आई वांट टु टेल देम आई विल शो देम व्हाट वायलेंट फ़िल्म विल बी जब ये अनिमल फ़िल्म आई तो इनके फँस इसी क्लिप को शेयर कर रहे है की देखो संदीप ने दिखा दिया की वायलेंट फ़िल्म क्या हो सकती अब ऐसी फिल्मों के फँस के बारे में भी एक बड़ी खास बात होती है आप ने अक्सर देखा होगा की सबसे ज्यादा टॉक्सिक फँस ऐसी फिल्मों के ही होते है क्योंकि बॉलीवुड की तरफ से काफी आई है चाहे अभी हाल ही में रिलीज़ हुई तेजस हो शहजादा हो या रणबीर कपूर की पिछली फ़िल्म समशेरा हो, इन सभी फिल्मों को नेगेटिव रिव्युस मिले ऑडिएंस ने जम्प करेने क्रिटिसाइज़ किया लेकिन किसी को को ई प्रॉब्लम हुई इस क्रिटिसिज्म से किसी को कोई प्रॉब्लम नहीं हुई लेकिन जब कबीर सिंह और अनिमल जैसी फिल्मों को क्रिटिसाइज़ किया जाता है तो कुछ लोग बिल्कुल टूट पड़ते है ंं फ़िल्म क्रिटिक सुचरिता त्यागी ने कहा कि ये फ़िल्म एंटरटेनिंग नहीं है और इस फ़िल्म के फँस ने जा कर उनकी ट्विटर पर उन्हें गालियां देनी शुरू कर दी ऐसा क्यों होता है? क्योंकि कुछ लोगों को इन फिल्मों में अपनी वेलिडेशन मिलती है टॉक्सिन तो वो एक ऐ से असामाजिक टाइप के तत्व होते हैं तो वो सब के लिए प्रॉब्लम आतिच् होते हैं अगर हमारी फिल्मों में इस तरह के किरदार दिखाए जाते है ं तो उन को अपनी उस व्यवहार के लिए जस्टिफिकेशन मिल जाती है वो उस लड़के की जो है, शर्ट पहन लेंगे जो आपने फ़िल्म में दिखाया होगा वैसा रुमाल डाल लेंगे तो वो अपने आप वीडियो पसंद आया तो यहाँ क्लिक करके अब आप रामायण वाला वीडियो देख सकते हो वो भी बहुत पसंद आएगा, बहुत बहुत धन्यवाद
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